1.1.284

चौपाई
देव दनुज भूपति भट नाना। समबल अधिक होउ बलवाना।।
जौं रन हमहि पचारै कोऊ। लरहिं सुखेन कालु किन होऊ।।
छत्रिय तनु धरि समर सकाना। कुल कलंकु तेहिं पावँर आना।।
कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसी। कालहु डरहिं न रन रघुबंसी।।
बिप्रबंस कै असि प्रभुताई। अभय होइ जो तुम्हहि डेराई।।
सुनु मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। उघरे पटल परसुधर मति के।।
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू।।
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ।।

दोहा/सोरठा
जाना राम प्रभाउ तब पुलक प्रफुल्लित गात।
जोरि पानि बोले बचन ह्दयँ न प्रेमु अमात।।284।।

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