1.1.292

चौपाई
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे। पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे।।
जिन्ह के जस प्रताप कें आगे। ससि मलीन रबि सीतल लागे।।
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे। देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे।।
सीय स्वयंबर भूप अनेका। समिटे सुभट एक तें एका।।
संभु सरासनु काहुँ न टारा। हारे सकल बीर बरिआरा।।
तीनि लोक महँ जे भटमानी। सभ कै सकति संभु धनु भानी।।
सकइ उठाइ सरासुर मेरू। सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू।।
जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा। सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा।।

दोहा/सोरठा
तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल।
भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल।।292।।

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