1.1.297

चौपाई
जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि।।
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरुप रति मानु बिमोचनि।।
गावहिं मंगल मंजुल बानीं। सुनिकल रव कलकंठि लजानीं।।
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना।।
मंगल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना।।
कतहुँ बिरिद बंदी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं।।
गावहिं सुंदरि मंगल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता।।
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा।।

दोहा/सोरठा
सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार।
जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार।।297।।

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