1.2.22

चौपाई
कुबरीं करि कबुली कैकेई। कपट छुरी उर पाहन टेई।।
लखइ न रानि निकट दुखु कैंसे। चरइ हरित तिन बलिपसु जैसें।।
सुनत बात मृदु अंत कठोरी। देति मनहुँ मधु माहुर घोरी।।
कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाही। स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं।।
दुइ बरदान भूप सन थाती। मागहु आजु जुड़ावहु छाती।।
सुतहि राजु रामहि बनवासू। देहु लेहु सब सवति हुलासु।।
भूपति राम सपथ जब करई। तब मागेहु जेहिं बचनु न टरई।।
होइ अकाजु आजु निसि बीतें। बचनु मोर प्रिय मानेहु जी तें।।

दोहा/सोरठा
बड़ कुघातु करि पातकिनि कहेसि कोपगृहँ जाहु।
काजु सँवारेहु सजग सबु सहसा जनि पतिआहु।।22।।

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