1.2.26

चौपाई
अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा। केहि दुइ सिर केहि जमु चह लीन्हा।।
कहु केहि रंकहि करौ नरेसू। कहु केहि नृपहि निकासौं देसू।।
सकउँ तोर अरि अमरउ मारी। काह कीट बपुरे नर नारी।।
जानसि मोर सुभाउ बरोरू। मनु तव आनन चंद चकोरू।।
प्रिया प्रान सुत सरबसु मोरें। परिजन प्रजा सकल बस तोरें।।
जौं कछु कहौ कपटु करि तोही। भामिनि राम सपथ सत मोही।।
बिहसि मागु मनभावति बाता। भूषन सजहि मनोहर गाता।।
घरी कुघरी समुझि जियँ देखू। बेगि प्रिया परिहरहि कुबेषू।।

दोहा/सोरठा
यह सुनि मन गुनि सपथ बड़ि बिहसि उठी मतिमंद।
भूषन सजति बिलोकि मृगु मनहुँ किरातिनि फंद।।26।।

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