1.2.40

चौपाई
सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू। मनहुँ दीन मनिहीन भुअंगू।।
सरुष समीप दीखि कैकेई। मानहुँ मीचु घरी गनि लेई।।
करुनामय मृदु राम सुभाऊ। प्रथम दीख दुखु सुना न काऊ।।
तदपि धीर धरि समउ बिचारी। पूँछी मधुर बचन महतारी।।
मोहि कहु मातु तात दुख कारन। करिअ जतन जेहिं होइ निवारन।।
सुनहु राम सबु कारन एहू। राजहि तुम पर बहुत सनेहू।।
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना। मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना।
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू। छाड़ि न सकहिं तुम्हार सँकोचू।।

दोहा/सोरठा
सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु।
सकहु न आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु।।40।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: