1.2.46

चौपाई
धन्य जनमु जगतीतल तासू। पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू।।
चारि पदारथ करतल ताकें। प्रिय पितु मातु प्रान सम जाकें।।
आयसु पालि जनम फलु पाई। ऐहउँ बेगिहिं होउ रजाई।।
बिदा मातु सन आवउँ मागी। चलिहउँ बनहि बहुरि पग लागी।।
अस कहि राम गवनु तब कीन्हा। भूप सोक बसु उतरु न दीन्हा।।
नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी। छुअत चढ़ी जनु सब तन बीछी।।
सुनि भए बिकल सकल नर नारी। बेलि बिटप जिमि देखि दवारी।।
जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु सोई। बड़ बिषादु नहिं धीरजु होई।।

दोहा/सोरठा
मुख सुखाहिं लोचन स्त्रवहि सोकु न हृदयँ समाइ।
मनहुँ करुन रस कटकई उतरी अवध बजाइ।।46।।

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