1.2.55

चौपाई
राखि न सकइ न कहि सक जाहू। दुहूँ भाँति उर दारुन दाहू।।
लिखत सुधाकर गा लिखि राहू। बिधि गति बाम सदा सब काहू।।
धरम सनेह उभयँ मति घेरी। भइ गति साँप छुछुंदरि केरी।।
राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू। धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू।।
कहउँ जान बन तौ बड़ि हानी। संकट सोच बिबस भइ रानी।।
बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी। रामु भरतु दोउ सुत सम जानी।।
सरल सुभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धरि भारी।।
तात जाउँ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयसु सब धरमक टीका।।

दोहा/सोरठा
राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहि न सो दुख लेसु।
तुम्ह बिनु भरतहि भूपतिहि प्रजहि प्रचंड कलेसु।।55।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: