1.2.58

चौपाई
दीन्हि असीस सासु मृदु बानी। अति सुकुमारि देखि अकुलानी।।
बैठि नमितमुख सोचति सीता। रूप रासि पति प्रेम पुनीता।।
चलन चहत बन जीवननाथू। केहि सुकृती सन होइहि साथू।।
की तनु प्रान कि केवल प्राना। बिधि करतबु कछु जाइ न जाना।।
चारु चरन नख लेखति धरनी। नूपुर मुखर मधुर कबि बरनी।।
मनहुँ प्रेम बस बिनती करहीं। हमहि सीय पद जनि परिहरहीं।।
मंजु बिलोचन मोचति बारी। बोली देखि राम महतारी।।
तात सुनहु सिय अति सुकुमारी। सासु ससुर परिजनहि पिआरी।।

दोहा/सोरठा
पिता जनक भूपाल मनि ससुर भानुकुल भानु।
पति रबिकुल कैरव बिपिन बिधु गुन रूप निधानु।।58।।

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