चौपाई
दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं। लागि अगम अपनी कदराईं।।
नरबर धीर धरम धुर धारी। निगम नीति कहुँ ते अधिकारी।।
मैं सिसु प्रभु सनेहँ प्रतिपाला। मंदरु मेरु कि लेहिं मराला।।
गुर पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।।
जहँ लगि जगत सनेह सगाई। प्रीति प्रतीति निगम निजु गाई।।
मोरें सबइ एक तुम्ह स्वामी। दीनबंधु उर अंतरजामी।।
धरम नीति उपदेसिअ ताही। कीरति भूति सुगति प्रिय जाही।।
मन क्रम बचन चरन रत होई। कृपासिंधु परिहरिअ कि सोई।।
दोहा/सोरठा
करुनासिंधु सुबंध के सुनि मृदु बचन बिनीत।
समुझाए उर लाइ प्रभु जानि सनेहँ सभीत।।72।।