1.2.87

चौपाई
सीता सचिव सहित दोउ भाई। सृंगबेरपुर पहुँचे जाई।।
उतरे राम देवसरि देखी। कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी।।
लखन सचिवँ सियँ किए प्रनामा। सबहि सहित सुखु पायउ रामा।।
गंग सकल मुद मंगल मूला। सब सुख करनि हरनि सब सूला।।
कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा। रामु बिलोकहिं गंग तरंगा।।
सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई। बिबुध नदी महिमा अधिकाई।।
मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ। सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ।।
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू।।

दोहा/सोरठा
सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु।
चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु।।87।।

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