चौपाई
प्राननाथ प्रिय देवर साथा। बीर धुरीन धरें धनु भाथा।।
नहिं मग श्रमु भ्रमु दुख मन मोरें। मोहि लगि सोचु करिअ जनि भोरें।।
सुनि सुमंत्रु सिय सीतलि बानी। भयउ बिकल जनु फनि मनि हानी।।
नयन सूझ नहिं सुनइ न काना। कहि न सकइ कछु अति अकुलाना।।
राम प्रबोधु कीन्ह बहु भाँति। तदपि होति नहिं सीतलि छाती।।
जतन अनेक साथ हित कीन्हे। उचित उतर रघुनंदन दीन्हे।।
मेटि जाइ नहिं राम रजाई। कठिन करम गति कछु न बसाई।।
राम लखन सिय पद सिरु नाई। फिरेउ बनिक जिमि मूर गवाँई।।
दोहा/सोरठा
-रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं।
देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं।।99।।