1.2.125

चौपाई
मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा। आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा।।
देखि राम छबि नयन जुड़ाने। करि सनमानु आश्रमहिं आने।।
मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए। कंद मूल फल मधुर मगाए।।
सिय सौमित्रि राम फल खाए। तब मुनि आश्रम दिए सुहाए।।
बालमीकि मन आनँदु भारी। मंगल मूरति नयन निहारी।।
तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई।।
तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा। बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा।।
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी। जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी।।

दोहा/सोरठा
तात बचन पुनि मातु हित भाइ भरत अस राउ।
मो कहुँ दरस तुम्हार प्रभु सबु मम पुन्य प्रभाउ।।125।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: