1.2.152

चौपाई
पुरजन परिजन सकल निहोरी। तात सुनाएहु बिनती मोरी।।
सोइ सब भाँति मोर हितकारी। जातें रह नरनाहु सुखारी।।
कहब सँदेसु भरत के आएँ। नीति न तजिअ राजपदु पाएँ।।
पालेहु प्रजहि करम मन बानी। सेएहु मातु सकल सम जानी।।
ओर निबाहेहु भायप भाई। करि पितु मातु सुजन सेवकाई।।
तात भाँति तेहि राखब राऊ। सोच मोर जेहिं करै न काऊ।।
लखन कहे कछु बचन कठोरा। बरजि राम पुनि मोहि निहोरा।।
बार बार निज सपथ देवाई। कहबि न तात लखन लरिकाई।।

दोहा/सोरठा
कहि प्रनाम कछु कहन लिय सिय भइ सिथिल सनेह।
थकित बचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह।।152।।

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