1.2.153

चौपाई
तेहि अवसर रघुबर रूख पाई। केवट पारहि नाव चलाई।।
रघुकुलतिलक चले एहि भाँती। देखउँ ठाढ़ कुलिस धरि छाती।।
मैं आपन किमि कहौं कलेसू। जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू।।
अस कहि सचिव बचन रहि गयऊ। हानि गलानि सोच बस भयऊ।।
सुत बचन सुनतहिं नरनाहू। परेउ धरनि उर दारुन दाहू।।
तलफत बिषम मोह मन मापा। माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा।।
करि बिलाप सब रोवहिं रानी। महा बिपति किमि जाइ बखानी।।
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा। धीरजहू कर धीरजु भागा।।

दोहा/सोरठा
भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु।
बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु।।153।।

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