1.2.154

चौपाई
प्रान कंठगत भयउ भुआलू। मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू।।
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी। जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी।।
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना। रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना।
उर धरि धीर राम महतारी। बोली बचन समय अनुसारी।।
नाथ समुझि मन करिअ बिचारू। राम बियोग पयोधि अपारू।।
करनधार तुम्ह अवध जहाजू। चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू।।
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू। नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू।।
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी। रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी।।

दोहा/सोरठा
प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि।
तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि।।154।।

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