चौपाई
जिअन मरन फलु दसरथ पावा। अंड अनेक अमल जसु छावा।।
जिअत राम बिधु बदनु निहारा। राम बिरह करि मरनु सँवारा।।
सोक बिकल सब रोवहिं रानी। रूपु सील बलु तेजु बखानी।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहीं भूमितल बारहिं बारा।।
बिलपहिं बिकल दास अरु दासी। घर घर रुदनु करहिं पुरबासी।।
अँथयउ आजु भानुकुल भानू। धरम अवधि गुन रूप निधानू।।
गारीं सकल कैकइहि देहीं। नयन बिहीन कीन्ह जग जेहीं।।
एहि बिधि बिलपत रैनि बिहानी। आए सकल महामुनि ग्यानी।।
दोहा/सोरठा
तब बसिष्ठ मुनि समय सम कहि अनेक इतिहास।
सोक नेवारेउ सबहि कर निज बिग्यान प्रकास।।156।।