चौपाई
चक्क चक्कि जिमि पुर नर नारी। चहत प्रात उर आरत भारी।।
जागत सब निसि भयउ बिहाना। भरत बोलाए सचिव सुजाना।।
कहेउ लेहु सबु तिलक समाजू। बनहिं देब मुनि रामहिं राजू।।
बेगि चलहु सुनि सचिव जोहारे। तुरत तुरग रथ नाग सँवारे।।
अरुंधती अरु अगिनि समाऊ। रथ चढ़ि चले प्रथम मुनिराऊ।।
बिप्र बृंद चढ़ि बाहन नाना। चले सकल तप तेज निधाना।।
नगर लोग सब सजि सजि जाना। चित्रकूट कहँ कीन्ह पयाना।।
सिबिका सुभग न जाहिं बखानी। चढ़ि चढ़ि चलत भई सब रानी।।
दोहा/सोरठा
सौंपि नगर सुचि सेवकनि सादर सकल चलाइ।
सुमिरि राम सिय चरन तब चले भरत दोउ भाइ।।187।।