1.2.190

चौपाई
होहु सँजोइल रोकहु घाटा। ठाटहु सकल मरै के ठाटा।।
सनमुख लोह भरत सन लेऊँ। जिअत न सुरसरि उतरन देऊँ।।
समर मरनु पुनि सुरसरि तीरा। राम काजु छनभंगु सरीरा।।
भरत भाइ नृपु मै जन नीचू। बड़ें भाग असि पाइअ मीचू।।
स्वामि काज करिहउँ रन रारी। जस धवलिहउँ भुवन दस चारी।।
तजउँ प्रान रघुनाथ निहोरें। दुहूँ हाथ मुद मोदक मोरें।।
साधु समाज न जाकर लेखा। राम भगत महुँ जासु न रेखा।।
जायँ जिअत जग सो महि भारू। जननी जौबन बिटप कुठारू।।

दोहा/सोरठा
बिगत बिषाद निषादपति सबहि बढ़ाइ उछाहु।
सुमिरि राम मागेउ तुरत तरकस धनुष सनाहु।।190।।

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