1.2.200

चौपाई
लालन जोगु लखन लघु लोने। भे न भाइ अस अहहिं न होने।।
पुरजन प्रिय पितु मातु दुलारे। सिय रघुबरहि प्रानपिआरे।।
मृदु मूरति सुकुमार सुभाऊ। तात बाउ तन लाग न काऊ।।
ते बन सहहिं बिपति सब भाँती। निदरे कोटि कुलिस एहिं छाती।।
राम जनमि जगु कीन्ह उजागर। रूप सील सुख सब गुन सागर।।
पुरजन परिजन गुर पितु माता। राम सुभाउ सबहि सुखदाता।।
बैरिउ राम बड़ाई करहीं। बोलनि मिलनि बिनय मन हरहीं।।
सारद कोटि कोटि सत सेषा। करि न सकहिं प्रभु गुन गन लेखा।।

दोहा/सोरठा
सुखस्वरुप रघुबंसमनि मंगल मोद निधान।
ते सोवत कुस डासि महि बिधि गति अति बलवान।।200।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: