1.2.204

चौपाई
झलका झलकत पायन्ह कैंसें। पंकज कोस ओस कन जैसें।।
भरत पयादेहिं आए आजू। भयउ दुखित सुनि सकल समाजू।।
खबरि लीन्ह सब लोग नहाए। कीन्ह प्रनामु त्रिबेनिहिं आए।।
सबिधि सितासित नीर नहाने। दिए दान महिसुर सनमाने।।
देखत स्यामल धवल हलोरे। पुलकि सरीर भरत कर जोरे।।
सकल काम प्रद तीरथराऊ। बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ।।
मागउँ भीख त्यागि निज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू।।
अस जियँ जानि सुजान सुदानी। सफल करहिं जग जाचक बानी।।

दोहा/सोरठा
अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहउँ निरबान।
जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन।।204।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: