1.2.218

चौपाई
बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने। सहसनयन बिनु लोचन जाने।।
मायापति सेवक सन माया। करइ त उलटि परइ सुरराया।।
तब किछु कीन्ह राम रुख जानी। अब कुचालि करि होइहि हानी।।
सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ।।
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई।।
लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा। यह महिमा जानहिं दुरबासा।।
भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम रामु जप जेही।।

दोहा/सोरठा
मनहुँ न आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु।
अजसु लोक परलोक दुख दिन दिन सोक समाजु।।218।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: