चौपाई
करि पितु क्रिया बेद जसि बरनी। भे पुनीत पातक तम तरनी।।
जासु नाम पावक अघ तूला। सुमिरत सकल सुमंगल मूला।।
सुद्ध सो भयउ साधु संमत अस। तीरथ आवाहन सुरसरि जस।।
सुद्ध भएँ दुइ बासर बीते। बोले गुर सन राम पिरीते।।
नाथ लोग सब निपट दुखारी। कंद मूल फल अंबु अहारी।।
सानुज भरतु सचिव सब माता। देखि मोहि पल जिमि जुग जाता।।
सब समेत पुर धारिअ पाऊ। आपु इहाँ अमरावति राऊ।।
बहुत कहेउँ सब कियउँ ढिठाई। उचित होइ तस करिअ गोसाँई।।
दोहा/सोरठा
धर्म सेतु करुनायतन कस न कहहु अस राम।
लोग दुखित दिन दुइ दरस देखि लहहुँ बिश्राम।।248।।