चौपाई
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं।।
खर दूषन मोहि सम बलवंता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता।।
सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा।।
तौ मै जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ।।
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा।।
जौं नररुप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ।।
चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिंधु तट जहवाँ।।
इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा सो कथा सुहाई।।
दोहा/सोरठा
लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद।
जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद।। 23।।