1.4.22

चौपाई
बानर कटक उमा में देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा।।
आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा।।
अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं।।
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई।।
ठाढ़े जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई।।
राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा।।
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई।।
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ।।

दोहा/सोरठा
बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत ।
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत।।22।।

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