चौपाई
हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि।।
आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा।।
निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा।।
सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी।।
मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह सनमाना।।
सहित सहाय जाहु मम हेतू। चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू।।
सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा।।
जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं।।
दोहा/सोरठा
सुख हाड़ लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज।
छीनि लेइ जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहि न लाज।।125।।
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