चौपाई
एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुंदर सुखद बिचित्र घनेरे।।
कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं।।
तब तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबंध बनाई।।
बिबिध प्रसंग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने।।
हरि अनंत हरिकथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।।
रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए।।
यह प्रसंग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी।।
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी।।सेवत सुलभ सकल दुख हारी।।
दोहा/सोरठा
सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल।।
अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि।।140।।
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