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चौपाई
स्वायंभू मनु अरु सतरूपा। जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा।।
दंपति धरम आचरन नीका। अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका।।
नृप उत्तानपाद सुत तासू। ध्रुव हरि भगत भयउ सुत जासू।।
लघु सुत नाम प्रिय्रब्रत ताही। बेद पुरान प्रसंसहि जाही।।
देवहूति पुनि तासु कुमारी। जो मुनि कर्दम कै प्रिय नारी।।
आदिदेव प्रभु दीनदयाला। जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला।।
सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना। तत्व बिचार निपुन भगवाना।।
तेहिं मनु राज कीन्ह बहु काला। प्रभु आयसु सब बिधि प्रतिपाला।।

दोहा/सोरठा
होइ न बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन।
हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु।।142।।

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