चौपाई
कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ।।
वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा।।
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती।।
देखि भानू जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी।।
अगर धूप बहु जनु अँधिआरी। उड़इ अभीर मनहुँ अरुनारी।।
मंदिर मनि समूह जनु तारा। नृप गृह कलस सो इंदु उदारा।।
भवन बेदधुनि अति मृदु बानी। जनु खग मूखर समयँ जनु सानी।।
कौतुक देखि पतंग भुलाना। एक मास तेइँ जात न जाना।।
दोहा/सोरठा
मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ।।195।।
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