1.68

चौपाई
सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी।।
नारदहुँ यह भेदु न जाना। दसा एक समुझब बिलगाना।।
सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना। पुलक सरीर भरे जल नैना।।
होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा।।
उपजेउ सिव पद कमल सनेहू। मिलन कठिन मन भा संदेहू।।
जानि कुअवसरु प्रीति दुराई। सखी उछँग बैठी पुनि जाई।।
झूठि न होइ देवरिषि बानी। सोचहि दंपति सखीं सयानी।।
उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ। कहहु नाथ का करिअ उपाऊ।।

दोहा/सोरठा
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार।।68।।

Pages