Two Book View

ramcharitmanas

1.138

चौपाई
जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी।।
तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना।।
मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला।।
मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे।।
जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरंत बिश्रामा।।
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें।।
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी।।
अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई।।

दोहा/सोरठा
बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।।
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान।।138।।

Pages

ramcharitmanas

1.138

चौपाई
जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी।।
तब मुनि अति सभीत हरि चरना। गहे पाहि प्रनतारति हरना।।
मृषा होउ मम श्राप कृपाला। मम इच्छा कह दीनदयाला।।
मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे। कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे।।
जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरंत बिश्रामा।।
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें।।
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी।।
अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई।।

दोहा/सोरठा
बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।।
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान।।138।।

Pages