Two Book View

ramcharitmanas

1.145

चौपाई
बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ।।
बिधि हरि तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहु बारा।।
मागहु बर बहु भाँति लोभाए। परम धीर नहिं चलहिं चलाए।।
अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा।।
प्रभु सर्बग्य दास निज जानी। गति अनन्य तापस नृप रानी।।
मागु मागु बरु भै नभ बानी। परम गभीर कृपामृत सानी।।
मृतक जिआवनि गिरा सुहाई। श्रबन रंध्र होइ उर जब आई।।
ह्रष्टपुष्ट तन भए सुहाए। मानहुँ अबहिं भवन ते आए।।

दोहा/सोरठा
श्रवन सुधा सम बचन सुनि पुलक प्रफुल्लित गात।
बोले मनु करि दंडवत प्रेम न हृदयँ समात।।145।।

Pages

ramcharitmanas

1.145

चौपाई
बरष सहस दस त्यागेउ सोऊ। ठाढ़े रहे एक पद दोऊ।।
बिधि हरि तप देखि अपारा। मनु समीप आए बहु बारा।।
मागहु बर बहु भाँति लोभाए। परम धीर नहिं चलहिं चलाए।।
अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा। तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा।।
प्रभु सर्बग्य दास निज जानी। गति अनन्य तापस नृप रानी।।
मागु मागु बरु भै नभ बानी। परम गभीर कृपामृत सानी।।
मृतक जिआवनि गिरा सुहाई। श्रबन रंध्र होइ उर जब आई।।
ह्रष्टपुष्ट तन भए सुहाए। मानहुँ अबहिं भवन ते आए।।

दोहा/सोरठा
श्रवन सुधा सम बचन सुनि पुलक प्रफुल्लित गात।
बोले मनु करि दंडवत प्रेम न हृदयँ समात।।145।।

Pages