Two Book View

ramcharitmanas

1.150

चौपाई
देखि प्रीति सुनि बचन अमोले। एवमस्तु करुनानिधि बोले।।
आपु सरिस खोजौं कहँ जाई। नृप तव तनय होब मैं आई।।
सतरूपहि बिलोकि कर जोरें। देबि मागु बरु जो रुचि तोरे।।
जो बरु नाथ चतुर नृप मागा। सोइ कृपाल मोहि अति प्रिय लागा।।
प्रभु परंतु सुठि होति ढिठाई। जदपि भगत हित तुम्हहि सोहाई।।
तुम्ह ब्रह्मादि जनक जग स्वामी। ब्रह्म सकल उर अंतरजामी।।
अस समुझत मन संसय होई। कहा जो प्रभु प्रवान पुनि सोई।।
जे निज भगत नाथ तव अहहीं। जो सुख पावहिं जो गति लहहीं।।

दोहा/सोरठा
सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु।।
सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु।।150।।

Pages

ramcharitmanas

1.150

चौपाई
देखि प्रीति सुनि बचन अमोले। एवमस्तु करुनानिधि बोले।।
आपु सरिस खोजौं कहँ जाई। नृप तव तनय होब मैं आई।।
सतरूपहि बिलोकि कर जोरें। देबि मागु बरु जो रुचि तोरे।।
जो बरु नाथ चतुर नृप मागा। सोइ कृपाल मोहि अति प्रिय लागा।।
प्रभु परंतु सुठि होति ढिठाई। जदपि भगत हित तुम्हहि सोहाई।।
तुम्ह ब्रह्मादि जनक जग स्वामी। ब्रह्म सकल उर अंतरजामी।।
अस समुझत मन संसय होई। कहा जो प्रभु प्रवान पुनि सोई।।
जे निज भगत नाथ तव अहहीं। जो सुख पावहिं जो गति लहहीं।।

दोहा/सोरठा
सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु।।
सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु।।150।।

Pages