101

3.2.101

चौपाई
કૃપાસિંધુ બોલે મુસુકાઈ। સોઇ કરુ જેંહિ તવ નાવ ન જાઈ।।
વેગિ આનુ જલ પાય પખારૂ। હોત બિલંબુ ઉતારહિ પારૂ।।
જાસુ નામ સુમરત એક બારા। ઉતરહિં નર ભવસિંધુ અપારા।।
સોઇ કૃપાલુ કેવટહિ નિહોરા। જેહિં જગુ કિય તિહુ પગહુ તે થોરા।।
પદ નખ નિરખિ દેવસરિ હરષી। સુનિ પ્રભુ બચન મોહમતિ કરષી।।
કેવટ રામ રજાયસુ પાવા। પાનિ કઠવતા ભરિ લેઇ આવા।।
અતિ આનંદ ઉમગિ અનુરાગા। ચરન સરોજ પખારન લાગા।।
બરષિ સુમન સુર સકલ સિહાહીં। એહિ સમ પુન્યપુંજ કોઉ નાહીં।।

3.1.101

चौपाई
જસિ બિબાહ કૈ બિધિ શ્રુતિ ગાઈ। મહામુનિન્હ સો સબ કરવાઈ।।
ગહિ ગિરીસ કુસ કન્યા પાની। ભવહિ સમરપીં જાનિ ભવાની।।
પાનિગ્રહન જબ કીન્હ મહેસા। હિંયહરષે તબ સકલ સુરેસા।।
બેદ મંત્ર મુનિબર ઉચ્ચરહીં। જય જય જય સંકર સુર કરહીં।।
બાજહિં બાજન બિબિધ બિધાના। સુમનબૃષ્ટિ નભ ભૈ બિધિ નાના।।
હર ગિરિજા કર ભયઉ બિબાહૂ। સકલ ભુવન ભરિ રહા ઉછાહૂ।।
દાસીં દાસ તુરગ રથ નાગા। ધેનુ બસન મનિ બસ્તુ બિભાગા।।
અન્ન કનકભાજન ભરિ જાના। દાઇજ દીન્હ ન જાઇ બખાના।।

2.7.101

छंद
বহু দাম সারহিং ধাম জতী৷ বিষযা হরি লীন্হি ন রহি বিরতী৷৷
তপসী ধনবংত দরিদ্র গৃহী৷ কলি কৌতুক তাত ন জাত কহী৷৷
কুলবংতি নিকারহিং নারি সতী৷ গৃহ আনিহিং চেরী নিবেরি গতী৷৷
সুত মানহিং মাতু পিতা তব লৌং৷ অবলানন দীখ নহীং জব লৌং৷৷
সসুরারি পিআরি লগী জব তেং৷ রিপরূপ কুটুংব ভএ তব তেং৷৷
নৃপ পাপ পরাযন ধর্ম নহীং৷ করি দংড বিডংব প্রজা নিতহীং৷৷
ধনবংত কুলীন মলীন অপী৷ দ্বিজ চিন্হ জনেউ উঘার তপী৷৷
নহিং মান পুরান ন বেদহি জো৷ হরি সেবক সংত সহী কলি সো৷৷
কবি বৃংদ উদার দুনী ন সুনী৷ গুন দূষক ব্রাত ন কোপি গুনী৷৷

2.6.101

छंद
জব কীন্হ তেহিং পাষংড৷ ভএ প্রগট জংতু প্রচংড৷৷
বেতাল ভূত পিসাচ৷ কর ধরেং ধনু নারাচ৷৷1৷৷
জোগিনি গহেং করবাল৷ এক হাথ মনুজ কপাল৷৷
করি সদ্য সোনিত পান৷ নাচহিং করহিং বহু গান৷৷2৷৷
ধরু মারু বোলহিং ঘোর৷ রহি পূরি ধুনি চহুওর৷৷
মুখ বাই ধাবহিং খান৷ তব লগে কীস পরান৷৷3৷৷
জহজাহিং মর্কট ভাগি৷ তহবরত দেখহিং আগি৷৷
ভএ বিকল বানর ভালু৷ পুনি লাগ বরষৈ বালু৷৷4৷৷
জহতহথকিত করি কীস৷ গর্জেউ বহুরি দসসীস৷৷
লছিমন কপীস সমেত৷ ভএ সকল বীর অচেত৷৷5৷৷
হা রাম হা রঘুনাথ৷ কহি সুভট মীজহিং হাথ৷৷

2.2.101

चौपाई
কৃপাসিংধু বোলে মুসুকাঈ৷ সোই করু জেংহি তব নাব ন জাঈ৷৷
বেগি আনু জল পায পখারূ৷ হোত বিলংবু উতারহি পারূ৷৷
জাসু নাম সুমরত এক বারা৷ উতরহিং নর ভবসিংধু অপারা৷৷
সোই কৃপালু কেবটহি নিহোরা৷ জেহিং জগু কিয তিহু পগহু তে থোরা৷৷
পদ নখ নিরখি দেবসরি হরষী৷ সুনি প্রভু বচন মোহমতি করষী৷৷
কেবট রাম রজাযসু পাবা৷ পানি কঠবতা ভরি লেই আবা৷৷
অতি আনংদ উমগি অনুরাগা৷ চরন সরোজ পখারন লাগা৷৷
বরষি সুমন সুর সকল সিহাহীং৷ এহি সম পুন্যপুংজ কোউ নাহীং৷৷

2.1.101

चौपाई
জসি বিবাহ কৈ বিধি শ্রুতি গাঈ৷ মহামুনিন্হ সো সব করবাঈ৷৷
গহি গিরীস কুস কন্যা পানী৷ ভবহি সমরপীং জানি ভবানী৷৷
পানিগ্রহন জব কীন্হ মহেসা৷ হিংযহরষে তব সকল সুরেসা৷৷
বেদ মংত্র মুনিবর উচ্চরহীং৷ জয জয জয সংকর সুর করহীং৷৷
বাজহিং বাজন বিবিধ বিধানা৷ সুমনবৃষ্টি নভ ভৈ বিধি নানা৷৷
হর গিরিজা কর ভযউ বিবাহূ৷ সকল ভুবন ভরি রহা উছাহূ৷৷
দাসীং দাস তুরগ রথ নাগা৷ ধেনু বসন মনি বস্তু বিভাগা৷৷
অন্ন কনকভাজন ভরি জানা৷ দাইজ দীন্হ ন জাই বখানা৷৷

1.7.101

छंद
बहु दाम सँवारहिं धाम जती। बिषया हरि लीन्हि न रहि बिरती।।
तपसी धनवंत दरिद्र गृही। कलि कौतुक तात न जात कही।।
कुलवंति निकारहिं नारि सती। गृह आनिहिं चेरी निबेरि गती।।
सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं।।
ससुरारि पिआरि लगी जब तें। रिपरूप कुटुंब भए तब तें।।
नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं।।
धनवंत कुलीन मलीन अपी। द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी।।
नहिं मान पुरान न बेदहि जो। हरि सेवक संत सही कलि सो।।
कबि बृंद उदार दुनी न सुनी। गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी।।

1.6.101

छंद
जब कीन्ह तेहिं पाषंड। भए प्रगट जंतु प्रचंड।।
बेताल भूत पिसाच। कर धरें धनु नाराच।।1।।
जोगिनि गहें करबाल। एक हाथ मनुज कपाल।।
करि सद्य सोनित पान। नाचहिं करहिं बहु गान।।2।।
धरु मारु बोलहिं घोर। रहि पूरि धुनि चहुँ ओर।।
मुख बाइ धावहिं खान। तब लगे कीस परान।।3।।
जहँ जाहिं मर्कट भागि। तहँ बरत देखहिं आगि।।
भए बिकल बानर भालु। पुनि लाग बरषै बालु।।4।।
जहँ तहँ थकित करि कीस। गर्जेउ बहुरि दससीस।।
लछिमन कपीस समेत। भए सकल बीर अचेत।।5।।
हा राम हा रघुनाथ। कहि सुभट मीजहिं हाथ।।

1.2.101

चौपाई
कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोइ करु जेंहि तव नाव न जाई।।
वेगि आनु जल पाय पखारू। होत बिलंबु उतारहि पारू।।
जासु नाम सुमरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।।
पद नख निरखि देवसरि हरषी। सुनि प्रभु बचन मोहँ मति करषी।।
केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भरि लेइ आवा।।
अति आनंद उमगि अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा।।
बरषि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुन्यपुंज कोउ नाहीं।।

दोहा/सोरठा

1.1.101

चौपाई
जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई।।
गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी।।
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा।।
बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं।।
बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना। सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना।।
हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू। सकल भुवन भरि रहा उछाहू।।
दासीं दास तुरग रथ नागा। धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा।।
अन्न कनकभाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना।।

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