102

3.2.102

चौपाई
ઉતરિ ઠાડ઼ ભએ સુરસરિ રેતા। સીયરામ ગુહ લખન સમેતા।।
કેવટ ઉતરિ દંડવત કીન્હા। પ્રભુહિ સકુચ એહિ નહિં કછુ દીન્હા।।
પિય હિય કી સિય જાનનિહારી। મનિ મુદરી મન મુદિત ઉતારી।।
કહેઉ કૃપાલ લેહિ ઉતરાઈ। કેવટ ચરન ગહે અકુલાઈ।।
નાથ આજુ મૈં કાહ ન પાવા। મિટે દોષ દુખ દારિદ દાવા।।
બહુત કાલ મૈં કીન્હિ મજૂરી। આજુ દીન્હ બિધિ બનિ ભલિ ભૂરી।।
અબ કછુ નાથ ન ચાહિઅ મોરેં। દીનદયાલ અનુગ્રહ તોરેં।।
ફિરતી બાર મોહિ જે દેબા। સો પ્રસાદુ મૈં સિર ધરિ લેબા।।

3.1.102

चौपाई
બહુ બિધિ સંભુ સાસ સમુઝાઈ। ગવની ભવન ચરન સિરુ નાઈ।।
જનનીં ઉમા બોલિ તબ લીન્હી। લૈ ઉછંગ સુંદર સિખ દીન્હી।।
કરેહુ સદા સંકર પદ પૂજા। નારિધરમુ પતિ દેઉ ન દૂજા।।
બચન કહત ભરે લોચન બારી। બહુરિ લાઇ ઉર લીન્હિ કુમારી।।
કત બિધિ સૃજીં નારિ જગ માહીં। પરાધીન સપનેહુસુખુ નાહીં।।
ભૈ અતિ પ્રેમ બિકલ મહતારી। ધીરજુ કીન્હ કુસમય બિચારી।।
પુનિ પુનિ મિલતિ પરતિ ગહિ ચરના। પરમ પ્રેમ કછુ જાઇ ન બરના।।
સબ નારિન્હ મિલિ ભેટિ ભવાની। જાઇ જનનિ ઉર પુનિ લપટાની।।

2.7.102

छंद
অবলা কচ ভূষন ভূরি ছুধা৷ ধনহীন দুখী মমতা বহুধা৷৷
সুখ চাহহিং মূঢ় ন ধর্ম রতা৷ মতি থোরি কঠোরি ন কোমলতা৷৷1৷৷
নর পীড়িত রোগ ন ভোগ কহীং৷ অভিমান বিরোধ অকারনহীং৷৷
লঘু জীবন সংবতু পংচ দসা৷ কলপাংত ন নাস গুমানু অসা৷৷2৷৷
কলিকাল বিহাল কিএ মনুজা৷ নহিং মানত ক্বৌ অনুজা তনুজা৷
নহিং তোষ বিচার ন সীতলতা৷ সব জাতি কুজাতি ভএ মগতা৷৷3৷৷
ইরিষা পরুষাচ্ছর লোলুপতা৷ ভরি পূরি রহী সমতা বিগতা৷৷
সব লোগ বিযোগ বিসোক হুএ৷ বরনাশ্রম ধর্ম অচার গএ৷৷4৷৷
দম দান দযা নহিং জানপনী৷ জড়তা পরবংচনতাতি ঘনী৷৷

2.6.102

चौपाई
কাটত বঢ়হিং সীস সমুদাঈ৷ জিমি প্রতি লাভ লোভ অধিকাঈ৷৷
মরই ন রিপু শ্রম ভযউ বিসেষা৷ রাম বিভীষন তন তব দেখা৷৷
উমা কাল মর জাকীং ঈছা৷ সো প্রভু জন কর প্রীতি পরীছা৷৷
সুনু সরবগ্য চরাচর নাযক৷ প্রনতপাল সুর মুনি সুখদাযক৷৷
নাভিকুংড পিযূষ বস যাকেং৷ নাথ জিঅত রাবনু বল তাকেং৷৷
সুনত বিভীষন বচন কৃপালা৷ হরষি গহে কর বান করালা৷৷
অসুভ হোন লাগে তব নানা৷ রোবহিং খর সৃকাল বহু স্বানা৷৷
বোলহি খগ জগ আরতি হেতূ৷ প্রগট ভএ নভ জহতহকেতূ৷৷
দস দিসি দাহ হোন অতি লাগা৷ ভযউ পরব বিনু রবি উপরাগা৷৷

2.2.102

चौपाई
উতরি ঠাড় ভএ সুরসরি রেতা৷ সীযরাম গুহ লখন সমেতা৷৷
কেবট উতরি দংডবত কীন্হা৷ প্রভুহি সকুচ এহি নহিং কছু দীন্হা৷৷
পিয হিয কী সিয জাননিহারী৷ মনি মুদরী মন মুদিত উতারী৷৷
কহেউ কৃপাল লেহি উতরাঈ৷ কেবট চরন গহে অকুলাঈ৷৷
নাথ আজু মৈং কাহ ন পাবা৷ মিটে দোষ দুখ দারিদ দাবা৷৷
বহুত কাল মৈং কীন্হি মজূরী৷ আজু দীন্হ বিধি বনি ভলি ভূরী৷৷
অব কছু নাথ ন চাহিঅ মোরেং৷ দীনদযাল অনুগ্রহ তোরেং৷৷
ফিরতী বার মোহি জে দেবা৷ সো প্রসাদু মৈং সির ধরি লেবা৷৷

2.1.102

चौपाई
বহু বিধি সংভু সাস সমুঝাঈ৷ গবনী ভবন চরন সিরু নাঈ৷৷
জননীং উমা বোলি তব লীন্হী৷ লৈ উছংগ সুংদর সিখ দীন্হী৷৷
করেহু সদা সংকর পদ পূজা৷ নারিধরমু পতি দেউ ন দূজা৷৷
বচন কহত ভরে লোচন বারী৷ বহুরি লাই উর লীন্হি কুমারী৷৷
কত বিধি সৃজীং নারি জগ মাহীং৷ পরাধীন সপনেহুসুখু নাহীং৷৷
ভৈ অতি প্রেম বিকল মহতারী৷ ধীরজু কীন্হ কুসময বিচারী৷৷
পুনি পুনি মিলতি পরতি গহি চরনা৷ পরম প্রেম কছু জাই ন বরনা৷৷
সব নারিন্হ মিলি ভেটি ভবানী৷ জাই জননি উর পুনি লপটানী৷৷

1.7.102

छंद
अबला कच भूषन भूरि छुधा। धनहीन दुखी ममता बहुधा।।
सुख चाहहिं मूढ़ न धर्म रता। मति थोरि कठोरि न कोमलता।।1।।
नर पीड़ित रोग न भोग कहीं। अभिमान बिरोध अकारनहीं।।
लघु जीवन संबतु पंच दसा। कलपांत न नास गुमानु असा।।2।।
कलिकाल बिहाल किए मनुजा। नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा।
नहिं तोष बिचार न सीतलता। सब जाति कुजाति भए मगता।।3।।
इरिषा परुषाच्छर लोलुपता। भरि पूरि रही समता बिगता।।
सब लोग बियोग बिसोक हुए। बरनाश्रम धर्म अचार गए।।4।।
दम दान दया नहिं जानपनी। जड़ता परबंचनताति घनी।।

1.6.102

चौपाई
काटत बढ़हिं सीस समुदाई। जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई।।
मरइ न रिपु श्रम भयउ बिसेषा। राम बिभीषन तन तब देखा।।
उमा काल मर जाकीं ईछा। सो प्रभु जन कर प्रीति परीछा।।
सुनु सरबग्य चराचर नायक। प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक।।
नाभिकुंड पियूष बस याकें। नाथ जिअत रावनु बल ताकें।।
सुनत बिभीषन बचन कृपाला। हरषि गहे कर बान कराला।।
असुभ होन लागे तब नाना। रोवहिं खर सृकाल बहु स्वाना।।
बोलहि खग जग आरति हेतू। प्रगट भए नभ जहँ तहँ केतू।।
दस दिसि दाह होन अति लागा। भयउ परब बिनु रबि उपरागा।।

1.2.102

चौपाई
उतरि ठाड़ भए सुरसरि रेता। सीयराम गुह लखन समेता।।
केवट उतरि दंडवत कीन्हा। प्रभुहि सकुच एहि नहिं कछु दीन्हा।।
पिय हिय की सिय जाननिहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी।।
कहेउ कृपाल लेहि उतराई। केवट चरन गहे अकुलाई।।
नाथ आजु मैं काह न पावा। मिटे दोष दुख दारिद दावा।।
बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी।।
अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें। दीनदयाल अनुग्रह तोरें।।
फिरती बार मोहि जे देबा। सो प्रसादु मैं सिर धरि लेबा।।

दोहा/सोरठा

1.1.102

चौपाई
बहु बिधि संभु सास समुझाई। गवनी भवन चरन सिरु नाई।।
जननीं उमा बोलि तब लीन्ही। लै उछंग सुंदर सिख दीन्ही।।
करेहु सदा संकर पद पूजा। नारिधरमु पति देउ न दूजा।।
बचन कहत भरे लोचन बारी। बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी।।
कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं।।
भै अति प्रेम बिकल महतारी। धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी।।
पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना। परम प्रेम कछु जाइ न बरना।।
सब नारिन्ह मिलि भेटि भवानी। जाइ जननि उर पुनि लपटानी।।

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