103

3.2.103

चौपाई
તબ મજ્જનુ કરિ રઘુકુલનાથા। પૂજિ પારથિવ નાયઉ માથા।।
સિયસુરસરિહિ કહેઉ કર જોરી। માતુ મનોરથ પુરઉબિ મોરી।।
પતિ દેવર સંગ કુસલ બહોરી। આઇ કરૌં જેહિં પૂજા તોરી।।
સુનિ સિય બિનય પ્રેમ રસ સાની। ભઇ તબ બિમલ બારિ બર બાની।।
સુનુ રઘુબીર પ્રિયા બૈદેહી। તવ પ્રભાઉ જગ બિદિત ન કેહી।।
લોકપ હોહિં બિલોકત તોરેં। તોહિ સેવહિં સબ સિધિ કર જોરેં।।
તુમ્હ જો હમહિ બડ઼િ બિનય સુનાઈ। કૃપા કીન્હિ મોહિ દીન્હિ બડ઼ાઈ।।
તદપિ દેબિ મૈં દેબિ અસીસા। સફલ હોપન હિત નિજ બાગીસા।।

3.1.103

चौपाई
તુરત ભવન આએ ગિરિરાઈ। સકલ સૈલ સર લિએ બોલાઈ।।
આદર દાન બિનય બહુમાના। સબ કર બિદા કીન્હ હિમવાના।।
જબહિં સંભુ કૈલાસહિં આએ। સુર સબ નિજ નિજ લોક સિધાએ।।
જગત માતુ પિતુ સંભુ ભવાની। તેહી સિંગારુ ન કહઉબખાની।।
કરહિં બિબિધ બિધિ ભોગ બિલાસા। ગનન્હ સમેત બસહિં કૈલાસા।।
હર ગિરિજા બિહાર નિત નયઊ। એહિ બિધિ બિપુલ કાલ ચલિ ગયઊ।।
તબ જનમેઉ ષટબદન કુમારા। તારકુ અસુર સમર જેહિં મારા।।
આગમ નિગમ પ્રસિદ્ધ પુરાના। ષન્મુખ જન્મુ સકલ જગ જાના।।

2.7.103

चौपाई
কৃতজুগ সব জোগী বিগ্যানী৷ করি হরি ধ্যান তরহিং ভব প্রানী৷৷
ত্রেতাবিবিধ জগ্য নর করহীং৷ প্রভুহি সমর্পি কর্ম ভব তরহীং৷৷
দ্বাপর করি রঘুপতি পদ পূজা৷ নর ভব তরহিং উপায ন দূজা৷৷
কলিজুগ কেবল হরি গুন গাহা৷ গাবত নর পাবহিং ভব থাহা৷৷
কলিজুগ জোগ ন জগ্য ন গ্যানা৷ এক অধার রাম গুন গানা৷৷
সব ভরোস তজি জো ভজ রামহি৷ প্রেম সমেত গাব গুন গ্রামহি৷৷
সোই ভব তর কছু সংসয নাহীং৷ নাম প্রতাপ প্রগট কলি মাহীং৷৷
কলি কর এক পুনীত প্রতাপা৷ মানস পুন্য হোহিং নহিং পাপা৷৷

2.6.103

चौपाई
সাযক এক নাভি সর সোষা৷ অপর লগে ভুজ সির করি রোষা৷৷
লৈ সির বাহু চলে নারাচা৷ সির ভুজ হীন রুংড মহি নাচা৷৷
ধরনি ধসই ধর ধাব প্রচংডা৷ তব সর হতি প্রভু কৃত দুই খংডা৷৷
গর্জেউ মরত ঘোর রব ভারী৷ কহারামু রন হতৌং পচারী৷৷
ডোলী ভূমি গিরত দসকংধর৷ ছুভিত সিংধু সরি দিগ্গজ ভূধর৷৷
ধরনি পরেউ দ্বৌ খংড বঢ়াঈ৷ চাপি ভালু মর্কট সমুদাঈ৷৷
মংদোদরি আগেং ভুজ সীসা৷ ধরি সর চলে জহাজগদীসা৷৷
প্রবিসে সব নিষংগ মহু জাঈ৷ দেখি সুরন্হ দুংদুভীং বজাঈ৷৷
তাসু তেজ সমান প্রভু আনন৷ হরষে দেখি সংভু চতুরানন৷৷

2.2.103

चौपाई
তব মজ্জনু করি রঘুকুলনাথা৷ পূজি পারথিব নাযউ মাথা৷৷
সিযসুরসরিহি কহেউ কর জোরী৷ মাতু মনোরথ পুরউবি মোরী৷৷
পতি দেবর সংগ কুসল বহোরী৷ আই করৌং জেহিং পূজা তোরী৷৷
সুনি সিয বিনয প্রেম রস সানী৷ ভই তব বিমল বারি বর বানী৷৷
সুনু রঘুবীর প্রিযা বৈদেহী৷ তব প্রভাউ জগ বিদিত ন কেহী৷৷
লোকপ হোহিং বিলোকত তোরেং৷ তোহি সেবহিং সব সিধি কর জোরেং৷৷
তুম্হ জো হমহি বড়ি বিনয সুনাঈ৷ কৃপা কীন্হি মোহি দীন্হি বড়াঈ৷৷
তদপি দেবি মৈং দেবি অসীসা৷ সফল হোপন হিত নিজ বাগীসা৷৷

2.1.103

चौपाई
তুরত ভবন আএ গিরিরাঈ৷ সকল সৈল সর লিএ বোলাঈ৷৷
আদর দান বিনয বহুমানা৷ সব কর বিদা কীন্হ হিমবানা৷৷
জবহিং সংভু কৈলাসহিং আএ৷ সুর সব নিজ নিজ লোক সিধাএ৷৷
জগত মাতু পিতু সংভু ভবানী৷ তেহী সিংগারু ন কহউবখানী৷৷
করহিং বিবিধ বিধি ভোগ বিলাসা৷ গনন্হ সমেত বসহিং কৈলাসা৷৷
হর গিরিজা বিহার নিত নযঊ৷ এহি বিধি বিপুল কাল চলি গযঊ৷৷
তব জনমেউ ষটবদন কুমারা৷ তারকু অসুর সমর জেহিং মারা৷৷
আগম নিগম প্রসিদ্ধ পুরানা৷ ষন্মুখ জন্মু সকল জগ জানা৷৷

1.7.103

चौपाई
कृतजुग सब जोगी बिग्यानी। करि हरि ध्यान तरहिं भव प्रानी।।
त्रेताँ बिबिध जग्य नर करहीं। प्रभुहि समर्पि कर्म भव तरहीं।।
द्वापर करि रघुपति पद पूजा। नर भव तरहिं उपाय न दूजा।।
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा।।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना।।
सब भरोस तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि।।
सोइ भव तर कछु संसय नाहीं। नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं।।
कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य होहिं नहिं पापा।।

1.6.103

चौपाई
सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा।।
लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा।।
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा।।
गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी।।
डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर।।
धरनि परेउ द्वौ खंड बढ़ाई। चापि भालु मर्कट समुदाई।।
मंदोदरि आगें भुज सीसा। धरि सर चले जहाँ जगदीसा।।
प्रबिसे सब निषंग महु जाई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई।।
तासु तेज समान प्रभु आनन। हरषे देखि संभु चतुरानन।।

1.2.103

चौपाई
तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। पूजि पारथिव नायउ माथा।।
सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। मातु मनोरथ पुरउबि मोरी।।
पति देवर संग कुसल बहोरी। आइ करौं जेहिं पूजा तोरी।।
सुनि सिय बिनय प्रेम रस सानी। भइ तब बिमल बारि बर बानी।।
सुनु रघुबीर प्रिया बैदेही। तव प्रभाउ जग बिदित न केही।।
लोकप होहिं बिलोकत तोरें। तोहि सेवहिं सब सिधि कर जोरें।।
तुम्ह जो हमहि बड़ि बिनय सुनाई। कृपा कीन्हि मोहि दीन्हि बड़ाई।।
तदपि देबि मैं देबि असीसा। सफल होपन हित निज बागीसा।।

1.1.103

चौपाई
तुरत भवन आए गिरिराई। सकल सैल सर लिए बोलाई।।
आदर दान बिनय बहुमाना। सब कर बिदा कीन्ह हिमवाना।।
जबहिं संभु कैलासहिं आए। सुर सब निज निज लोक सिधाए।।
जगत मातु पितु संभु भवानी। तेही सिंगारु न कहउँ बखानी।।
करहिं बिबिध बिधि भोग बिलासा। गनन्ह समेत बसहिं कैलासा।।
हर गिरिजा बिहार नित नयऊ। एहि बिधि बिपुल काल चलि गयऊ।।
तब जनमेउ षटबदन कुमारा। तारकु असुर समर जेहिं मारा।।
आगम निगम प्रसिद्ध पुराना। षन्मुख जन्मु सकल जग जाना।।

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