104

3.2.104

चौपाई
ગંગ બચન સુનિ મંગલ મૂલા। મુદિત સીય સુરસરિ અનુકુલા।।
તબ પ્રભુ ગુહહિ કહેઉ ઘર જાહૂ। સુનત સૂખ મુખુ ભા ઉર દાહૂ।।
દીન બચન ગુહ કહ કર જોરી। બિનય સુનહુ રઘુકુલમનિ મોરી।।
નાથ સાથ રહિ પંથુ દેખાઈ। કરિ દિન ચારિ ચરન સેવકાઈ।।
જેહિં બન જાઇ રહબ રઘુરાઈ। પરનકુટી મૈં કરબિ સુહાઈ।।
તબ મોહિ કહજસિ દેબ રજાઈ। સોઇ કરિહઉરઘુબીર દોહાઈ।।
સહજ સનેહ રામ લખિ તાસુ। સંગ લીન્હ ગુહ હૃદય હુલાસૂ।।
પુનિ ગુહગ્યાતિ બોલિ સબ લીન્હે। કરિ પરિતોષુ બિદા તબ કીન્હે।।

3.1.104

चौपाई
સંભુ ચરિત સુનિ સરસ સુહાવા। ભરદ્વાજ મુનિ અતિ સુખ પાવા।।
બહુ લાલસા કથા પર બાઢ઼ી। નયનન્હિ નીરુ રોમાવલિ ઠાઢ઼ી।।
પ્રેમ બિબસ મુખ આવ ન બાની। દસા દેખિ હરષે મુનિ ગ્યાની।।
અહો ધન્ય તવ જન્મુ મુનીસા। તુમ્હહિ પ્રાન સમ પ્રિય ગૌરીસા।।
સિવ પદ કમલ જિન્હહિ રતિ નાહીં। રામહિ તે સપનેહુન સોહાહીં।।
બિનુ છલ બિસ્વનાથ પદ નેહૂ। રામ ભગત કર લચ્છન એહૂ।।
સિવ સમ કો રઘુપતિ બ્રતધારી। બિનુ અઘ તજી સતી અસિ નારી।।
પનુ કરિ રઘુપતિ ભગતિ દેખાઈ। કો સિવ સમ રામહિ પ્રિય ભાઈ।।

2.7.104

चौपाई
নিত জুগ ধর্ম হোহিং সব কেরে৷ হৃদযরাম মাযা কে প্রেরে৷৷
সুদ্ধ সত্ব সমতা বিগ্যানা৷ কৃত প্রভাব প্রসন্ন মন জানা৷৷
সত্ব বহুত রজ কছু রতি কর্মা৷ সব বিধি সুখ ত্রেতা কর ধর্মা৷৷
বহু রজ স্বল্প সত্ব কছু তামস৷ দ্বাপর ধর্ম হরষ ভয মানস৷৷
তামস বহুত রজোগুন থোরা৷ কলি প্রভাব বিরোধ চহুওরা৷৷
বুধ জুগ ধর্ম জানি মন মাহীং৷ তজি অধর্ম রতি ধর্ম করাহীং৷৷
কাল ধর্ম নহিং ব্যাপহিং তাহী৷ রঘুপতি চরন প্রীতি অতি জাহী৷৷
নট কৃত বিকট কপট খগরাযা৷ নট সেবকহি ন ব্যাপই মাযা৷৷

2.6.104

चौपाई
পতি সির দেখত মংদোদরী৷ মুরুছিত বিকল ধরনি খসি পরী৷৷
জুবতি বৃংদ রোবত উঠি ধাঈং৷ তেহি উঠাই রাবন পহিং আঈ৷৷
পতি গতি দেখি তে করহিং পুকারা৷ ছূটে কচ নহিং বপুষ সারা৷৷
উর তাড়না করহিং বিধি নানা৷ রোবত করহিং প্রতাপ বখানা৷৷
তব বল নাথ ডোল নিত ধরনী৷ তেজ হীন পাবক সসি তরনী৷৷
সেষ কমঠ সহি সকহিং ন ভারা৷ সো তনু ভূমি পরেউ ভরি ছারা৷৷
বরুন কুবের সুরেস সমীরা৷ রন সন্মুখ ধরি কাহুন ধীরা৷৷
ভুজবল জিতেহু কাল জম সাঈং৷ আজু পরেহু অনাথ কী নাঈং৷৷
জগত বিদিত তুম্হারী প্রভুতাঈ৷ সুত পরিজন বল বরনি ন জাঈ৷৷

2.2.104

चौपाई
গংগ বচন সুনি মংগল মূলা৷ মুদিত সীয সুরসরি অনুকুলা৷৷
তব প্রভু গুহহি কহেউ ঘর জাহূ৷ সুনত সূখ মুখু ভা উর দাহূ৷৷
দীন বচন গুহ কহ কর জোরী৷ বিনয সুনহু রঘুকুলমনি মোরী৷৷
নাথ সাথ রহি পংথু দেখাঈ৷ করি দিন চারি চরন সেবকাঈ৷৷
জেহিং বন জাই রহব রঘুরাঈ৷ পরনকুটী মৈং করবি সুহাঈ৷৷
তব মোহি কহজসি দেব রজাঈ৷ সোই করিহউরঘুবীর দোহাঈ৷৷
সহজ সনেহ রাম লখি তাসু৷ সংগ লীন্হ গুহ হৃদয হুলাসূ৷৷
পুনি গুহগ্যাতি বোলি সব লীন্হে৷ করি পরিতোষু বিদা তব কীন্হে৷৷

2.1.104

चौपाई
সংভু চরিত সুনি সরস সুহাবা৷ ভরদ্বাজ মুনি অতি সুখ পাবা৷৷
বহু লালসা কথা পর বাঢ়ী৷ নযনন্হি নীরু রোমাবলি ঠাঢ়ী৷৷
প্রেম বিবস মুখ আব ন বানী৷ দসা দেখি হরষে মুনি গ্যানী৷৷
অহো ধন্য তব জন্মু মুনীসা৷ তুম্হহি প্রান সম প্রিয গৌরীসা৷৷
সিব পদ কমল জিন্হহি রতি নাহীং৷ রামহি তে সপনেহুন সোহাহীং৷৷
বিনু ছল বিস্বনাথ পদ নেহূ৷ রাম ভগত কর লচ্ছন এহূ৷৷
সিব সম কো রঘুপতি ব্রতধারী৷ বিনু অঘ তজী সতী অসি নারী৷৷
পনু করি রঘুপতি ভগতি দেখাঈ৷ কো সিব সম রামহি প্রিয ভাঈ৷৷

1.7.104

चौपाई
नित जुग धर्म होहिं सब केरे। हृदयँ राम माया के प्रेरे।।
सुद्ध सत्व समता बिग्याना। कृत प्रभाव प्रसन्न मन जाना।।
सत्व बहुत रज कछु रति कर्मा। सब बिधि सुख त्रेता कर धर्मा।।
बहु रज स्वल्प सत्व कछु तामस। द्वापर धर्म हरष भय मानस।।
तामस बहुत रजोगुन थोरा। कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा।।
बुध जुग धर्म जानि मन माहीं। तजि अधर्म रति धर्म कराहीं।।
काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही। रघुपति चरन प्रीति अति जाही।।
नट कृत बिकट कपट खगराया। नट सेवकहि न ब्यापइ माया।।

1.6.104

चौपाई
पति सिर देखत मंदोदरी। मुरुछित बिकल धरनि खसि परी।।
जुबति बृंद रोवत उठि धाईं। तेहि उठाइ रावन पहिं आई।।
पति गति देखि ते करहिं पुकारा। छूटे कच नहिं बपुष सँभारा।।
उर ताड़ना करहिं बिधि नाना। रोवत करहिं प्रताप बखाना।।
तव बल नाथ डोल नित धरनी। तेज हीन पावक ससि तरनी।।
सेष कमठ सहि सकहिं न भारा। सो तनु भूमि परेउ भरि छारा।।
बरुन कुबेर सुरेस समीरा। रन सन्मुख धरि काहुँ न धीरा।।
भुजबल जितेहु काल जम साईं। आजु परेहु अनाथ की नाईं।।
जगत बिदित तुम्हारी प्रभुताई। सुत परिजन बल बरनि न जाई।।

1.2.104

चौपाई
गंग बचन सुनि मंगल मूला। मुदित सीय सुरसरि अनुकुला।।
तब प्रभु गुहहि कहेउ घर जाहू। सुनत सूख मुखु भा उर दाहू।।
दीन बचन गुह कह कर जोरी। बिनय सुनहु रघुकुलमनि मोरी।।
नाथ साथ रहि पंथु देखाई। करि दिन चारि चरन सेवकाई।।
जेहिं बन जाइ रहब रघुराई। परनकुटी मैं करबि सुहाई।।
तब मोहि कहँ जसि देब रजाई। सोइ करिहउँ रघुबीर दोहाई।।
सहज सनेह राम लखि तासु। संग लीन्ह गुह हृदय हुलासू।।
पुनि गुहँ ग्याति बोलि सब लीन्हे। करि परितोषु बिदा तब कीन्हे।।

दोहा/सोरठा

1.1.104

चौपाई
संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुख पावा।।
बहु लालसा कथा पर बाढ़ी। नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी।।
प्रेम बिबस मुख आव न बानी। दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी।।
अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा। तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा।।
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं।।
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू।।
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी। बिनु अघ तजी सती असि नारी।।
पनु करि रघुपति भगति देखाई। को सिव सम रामहि प्रिय भाई।।

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