107

3.2.107

चौपाई
કુસલ પ્રસ્ન કરિ આસન દીન્હે। પૂજિ પ્રેમ પરિપૂરન કીન્હે।।
કંદ મૂલ ફલ અંકુર નીકે। દિએ આનિ મુનિ મનહુઅમી કે।।
સીય લખન જન સહિત સુહાએ। અતિ રુચિ રામ મૂલ ફલ ખાએ।।
ભએ બિગતશ્રમ રામુ સુખારે। ભરવ્દાજ મૃદુ બચન ઉચારે।।
આજુ સુફલ તપુ તીરથ ત્યાગૂ। આજુ સુફલ જપ જોગ બિરાગૂ।।
સફલ સકલ સુભ સાધન સાજૂ। રામ તુમ્હહિ અવલોકત આજૂ।।
લાભ અવધિ સુખ અવધિ ન દૂજી। તુમ્હારેં દરસ આસ સબ પૂજી।।
અબ કરિ કૃપા દેહુ બર એહૂ। નિજ પદ સરસિજ સહજ સનેહૂ।।

3.1.107

चौपाई
બૈઠે સોહ કામરિપુ કૈસેં। ધરેં સરીરુ સાંતરસુ જૈસેં।।
પારબતી ભલ અવસરુ જાની। ગઈ સંભુ પહિં માતુ ભવાની।।
જાનિ પ્રિયા આદરુ અતિ કીન્હા। બામ ભાગ આસનુ હર દીન્હા।।
બૈઠીં સિવ સમીપ હરષાઈ। પૂરુબ જન્મ કથા ચિત આઈ।।
પતિ હિયહેતુ અધિક અનુમાની। બિહસિ ઉમા બોલીં પ્રિય બાની।।
કથા જો સકલ લોક હિતકારી। સોઇ પૂછન ચહ સૈલકુમારી।।
બિસ્વનાથ મમ નાથ પુરારી। ત્રિભુવન મહિમા બિદિત તુમ્હારી।।
ચર અરુ અચર નાગ નર દેવા। સકલ કરહિં પદ પંકજ સેવા।।

2.7.107

चौपाई
মংদির মাঝ ভঈ নভ বানী৷ রে হতভাগ্য অগ্য অভিমানী৷৷
জদ্যপি তব গুর কেং নহিং ক্রোধা৷ অতি কৃপাল চিত সম্যক বোধা৷৷
তদপি সাপ সঠ দৈহউতোহী৷ নীতি বিরোধ সোহাই ন মোহী৷৷
জৌং নহিং দংড করৌং খল তোরা৷ ভ্রষ্ট হোই শ্রুতিমারগ মোরা৷৷
জে সঠ গুর সন ইরিষা করহীং৷ রৌরব নরক কোটি জুগ পরহীং৷৷
ত্রিজগ জোনি পুনি ধরহিং সরীরা৷ অযুত জন্ম ভরি পাবহিং পীরা৷৷
বৈঠ রহেসি অজগর ইব পাপী৷ সর্প হোহি খল মল মতি ব্যাপী৷৷
মহা বিটপ কোটর মহুজাঈ৷৷রহু অধমাধম অধগতি পাঈ৷৷

2.6.107

चौपाई
পুনি প্রভু বোলি লিযউ হনুমানা৷ লংকা জাহু কহেউ ভগবানা৷৷
সমাচার জানকিহি সুনাবহু৷ তাসু কুসল লৈ তুম্হ চলি আবহু৷৷
তব হনুমংত নগর মহুআএ৷ সুনি নিসিচরী নিসাচর ধাএ৷৷
বহু প্রকার তিন্হ পূজা কীন্হী৷ জনকসুতা দেখাই পুনি দীন্হী৷৷
দূরহি তে প্রনাম কপি কীন্হা৷ রঘুপতি দূত জানকীং চীন্হা৷৷
কহহু তাত প্রভু কৃপানিকেতা৷ কুসল অনুজ কপি সেন সমেতা৷৷
সব বিধি কুসল কোসলাধীসা৷ মাতু সমর জীত্যো দসসীসা৷৷
অবিচল রাজু বিভীষন পাযো৷ সুনি কপি বচন হরষ উর ছাযো৷৷

2.2.107

चौपाई
কুসল প্রস্ন করি আসন দীন্হে৷ পূজি প্রেম পরিপূরন কীন্হে৷৷
কংদ মূল ফল অংকুর নীকে৷ দিএ আনি মুনি মনহুঅমী কে৷৷
সীয লখন জন সহিত সুহাএ৷ অতি রুচি রাম মূল ফল খাএ৷৷
ভএ বিগতশ্রম রামু সুখারে৷ ভরব্দাজ মৃদু বচন উচারে৷৷
আজু সুফল তপু তীরথ ত্যাগূ৷ আজু সুফল জপ জোগ বিরাগূ৷৷
সফল সকল সুভ সাধন সাজূ৷ রাম তুম্হহি অবলোকত আজূ৷৷
লাভ অবধি সুখ অবধি ন দূজী৷ তুম্হারেং দরস আস সব পূজী৷৷
অব করি কৃপা দেহু বর এহূ৷ নিজ পদ সরসিজ সহজ সনেহূ৷৷

2.1.107

चौपाई
বৈঠে সোহ কামরিপু কৈসেং৷ ধরেং সরীরু সাংতরসু জৈসেং৷৷
পারবতী ভল অবসরু জানী৷ গঈ সংভু পহিং মাতু ভবানী৷৷
জানি প্রিযা আদরু অতি কীন্হা৷ বাম ভাগ আসনু হর দীন্হা৷৷
বৈঠীং সিব সমীপ হরষাঈ৷ পূরুব জন্ম কথা চিত আঈ৷৷
পতি হিযহেতু অধিক অনুমানী৷ বিহসি উমা বোলীং প্রিয বানী৷৷
কথা জো সকল লোক হিতকারী৷ সোই পূছন চহ সৈলকুমারী৷৷
বিস্বনাথ মম নাথ পুরারী৷ ত্রিভুবন মহিমা বিদিত তুম্হারী৷৷
চর অরু অচর নাগ নর দেবা৷ সকল করহিং পদ পংকজ সেবা৷৷

1.7.107

चौपाई
मंदिर माझ भई नभ बानी। रे हतभाग्य अग्य अभिमानी।।
जद्यपि तव गुर कें नहिं क्रोधा। अति कृपाल चित सम्यक बोधा।।
तदपि साप सठ दैहउँ तोही। नीति बिरोध सोहाइ न मोही।।
जौं नहिं दंड करौं खल तोरा। भ्रष्ट होइ श्रुतिमारग मोरा।।
जे सठ गुर सन इरिषा करहीं। रौरव नरक कोटि जुग परहीं।।
त्रिजग जोनि पुनि धरहिं सरीरा। अयुत जन्म भरि पावहिं पीरा।।
बैठ रहेसि अजगर इव पापी। सर्प होहि खल मल मति ब्यापी।।
महा बिटप कोटर महुँ जाई।।रहु अधमाधम अधगति पाई।।

1.6.107

चौपाई
पुनि प्रभु बोलि लियउ हनुमाना। लंका जाहु कहेउ भगवाना।।
समाचार जानकिहि सुनावहु। तासु कुसल लै तुम्ह चलि आवहु।।
तब हनुमंत नगर महुँ आए। सुनि निसिचरी निसाचर धाए।।
बहु प्रकार तिन्ह पूजा कीन्ही। जनकसुता देखाइ पुनि दीन्ही।।
दूरहि ते प्रनाम कपि कीन्हा। रघुपति दूत जानकीं चीन्हा।।
कहहु तात प्रभु कृपानिकेता। कुसल अनुज कपि सेन समेता।।
सब बिधि कुसल कोसलाधीसा। मातु समर जीत्यो दससीसा।।
अबिचल राजु बिभीषन पायो। सुनि कपि बचन हरष उर छायो।।

1.2.107

चौपाई
कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे। पूजि प्रेम परिपूरन कीन्हे।।
कंद मूल फल अंकुर नीके। दिए आनि मुनि मनहुँ अमी के।।
सीय लखन जन सहित सुहाए। अति रुचि राम मूल फल खाए।।
भए बिगतश्रम रामु सुखारे। भरव्दाज मृदु बचन उचारे।।
आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू। आजु सुफल जप जोग बिरागू।।
सफल सकल सुभ साधन साजू। राम तुम्हहि अवलोकत आजू।।
लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी। तुम्हारें दरस आस सब पूजी।।
अब करि कृपा देहु बर एहू। निज पद सरसिज सहज सनेहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.107

चौपाई
बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें।।
पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहिं मातु भवानी।।
जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा।।
बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई।।
पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी।।
कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी।।
बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी।।
चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा।।

दोहा/सोरठा

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