109

3.2.109

चौपाई
રામ સપ્રેમ કહેઉ મુનિ પાહીં। નાથ કહિઅ હમ કેહિ મગ જાહીં।।
મુનિ મન બિહસિ રામ સન કહહીં। સુગમ સકલ મગ તુમ્હ કહુઅહહીં।।
સાથ લાગિ મુનિ સિષ્ય બોલાએ। સુનિ મન મુદિત પચાસક આએ।।
સબન્હિ રામ પર પ્રેમ અપારા। સકલ કહહિ મગુ દીખ હમારા।।
મુનિ બટુ ચારિ સંગ તબ દીન્હે। જિન્હ બહુ જનમ સુકૃત સબ કીન્હે।।
કરિ પ્રનામુ રિષિ આયસુ પાઈ। પ્રમુદિત હૃદયચલે રઘુરાઈ।।
ગ્રામ નિકટ જબ નિકસહિ જાઈ। દેખહિ દરસુ નારિ નર ધાઈ।।
હોહિ સનાથ જનમ ફલુ પાઈ। ફિરહિ દુખિત મનુ સંગ પઠાઈ।।

3.1.109

चौपाई
જૌં અનીહ બ્યાપક બિભુ કોઊ। કબહુ બુઝાઇ નાથ મોહિ સોઊ।।
અગ્ય જાનિ રિસ ઉર જનિ ધરહૂ। જેહિ બિધિ મોહ મિટૈ સોઇ કરહૂ।।
મૈ બન દીખિ રામ પ્રભુતાઈ। અતિ ભય બિકલ ન તુમ્હહિ સુનાઈ।।
તદપિ મલિન મન બોધુ ન આવા। સો ફલુ ભલી ભાિ હમ પાવા।।
અજહૂકછુ સંસઉ મન મોરે। કરહુ કૃપા બિનવઉકર જોરેં।।
પ્રભુ તબ મોહિ બહુ ભાિ પ્રબોધા। નાથ સો સમુઝિ કરહુ જનિ ક્રોધા।।
તબ કર અસ બિમોહ અબ નાહીં। રામકથા પર રુચિ મન માહીં।।
કહહુ પુનીત રામ ગુન ગાથા। ભુજગરાજ ભૂષન સુરનાથા।।

2.7.109

चौपाई
এহি কর হোই পরম কল্যানা৷ সোই করহু অব কৃপানিধানা৷৷
বিপ্রগিরা সুনি পরহিত সানী৷ এবমস্তু ইতি ভই নভবানী৷৷
জদপি কীন্হ এহিং দারুন পাপা৷ মৈং পুনি দীন্হ কোপ করি সাপা৷৷
তদপি তুম্হার সাধুতা দেখী৷ করিহউএহি পর কৃপা বিসেষী৷৷
ছমাসীল জে পর উপকারী৷ তে দ্বিজ মোহি প্রিয জথা খরারী৷৷
মোর শ্রাপ দ্বিজ ব্যর্থ ন জাইহি৷ জন্ম সহস অবস্য যহ পাইহি৷৷
জনমত মরত দুসহ দুখ হোঈ৷ অহি স্বল্পউ নহিং ব্যাপিহি সোঈ৷৷
কবনেউজন্ম মিটিহি নহিং গ্যানা৷ সুনহি সূদ্র মম বচন প্রবানা৷৷
রঘুপতি পুরীং জন্ম তব ভযঊ৷ পুনি তৈং মম সেবামন দযঊ৷৷

2.6.109

चौपाई
প্রভু কে বচন সীস ধরি সীতা৷ বোলী মন ক্রম বচন পুনীতা৷৷
লছিমন হোহু ধরম কে নেগী৷ পাবক প্রগট করহু তুম্হ বেগী৷৷
সুনি লছিমন সীতা কৈ বানী৷ বিরহ বিবেক ধরম নিতি সানী৷৷
লোচন সজল জোরি কর দোঊ৷ প্রভু সন কছু কহি সকত ন ওঊ৷৷
দেখি রাম রুখ লছিমন ধাএ৷ পাবক প্রগটি কাঠ বহু লাএ৷৷
পাবক প্রবল দেখি বৈদেহী৷ হৃদযহরষ নহিং ভয কছু তেহী৷৷
জৌং মন বচ ক্রম মম উর মাহীং৷ তজি রঘুবীর আন গতি নাহীং৷৷
তৌ কৃসানু সব কৈ গতি জানা৷ মো কহুহোউ শ্রীখংড সমানা৷৷

2.2.109

चौपाई
রাম সপ্রেম কহেউ মুনি পাহীং৷ নাথ কহিঅ হম কেহি মগ জাহীং৷৷
মুনি মন বিহসি রাম সন কহহীং৷ সুগম সকল মগ তুম্হ কহুঅহহীং৷৷
সাথ লাগি মুনি সিষ্য বোলাএ৷ সুনি মন মুদিত পচাসক আএ৷৷
সবন্হি রাম পর প্রেম অপারা৷ সকল কহহি মগু দীখ হমারা৷৷
মুনি বটু চারি সংগ তব দীন্হে৷ জিন্হ বহু জনম সুকৃত সব কীন্হে৷৷
করি প্রনামু রিষি আযসু পাঈ৷ প্রমুদিত হৃদযচলে রঘুরাঈ৷৷
গ্রাম নিকট জব নিকসহি জাঈ৷ দেখহি দরসু নারি নর ধাঈ৷৷
হোহি সনাথ জনম ফলু পাঈ৷ ফিরহি দুখিত মনু সংগ পঠাঈ৷৷

2.1.109

चौपाई
জৌং অনীহ ব্যাপক বিভু কোঊ৷ কবহু বুঝাই নাথ মোহি সোঊ৷৷
অগ্য জানি রিস উর জনি ধরহূ৷ জেহি বিধি মোহ মিটৈ সোই করহূ৷৷
মৈ বন দীখি রাম প্রভুতাঈ৷ অতি ভয বিকল ন তুম্হহি সুনাঈ৷৷
তদপি মলিন মন বোধু ন আবা৷ সো ফলু ভলী ভাি হম পাবা৷৷
অজহূকছু সংসউ মন মোরে৷ করহু কৃপা বিনবউকর জোরেং৷৷
প্রভু তব মোহি বহু ভাি প্রবোধা৷ নাথ সো সমুঝি করহু জনি ক্রোধা৷৷
তব কর অস বিমোহ অব নাহীং৷ রামকথা পর রুচি মন মাহীং৷৷
কহহু পুনীত রাম গুন গাথা৷ ভুজগরাজ ভূষন সুরনাথা৷৷

1.7.109

चौपाई
एहि कर होइ परम कल्याना। सोइ करहु अब कृपानिधाना।।
बिप्रगिरा सुनि परहित सानी। एवमस्तु इति भइ नभबानी।।
जदपि कीन्ह एहिं दारुन पापा। मैं पुनि दीन्ह कोप करि सापा।।
तदपि तुम्हार साधुता देखी। करिहउँ एहि पर कृपा बिसेषी।।
छमासील जे पर उपकारी। ते द्विज मोहि प्रिय जथा खरारी।।
मोर श्राप द्विज ब्यर्थ न जाइहि। जन्म सहस अवस्य यह पाइहि।।
जनमत मरत दुसह दुख होई। अहि स्वल्पउ नहिं ब्यापिहि सोई।।
कवनेउँ जन्म मिटिहि नहिं ग्याना। सुनहि सूद्र मम बचन प्रवाना।।
रघुपति पुरीं जन्म तब भयऊ। पुनि तैं मम सेवाँ मन दयऊ।।

1.6.109

चौपाई
प्रभु के बचन सीस धरि सीता। बोली मन क्रम बचन पुनीता।।
लछिमन होहु धरम के नेगी। पावक प्रगट करहु तुम्ह बेगी।।
सुनि लछिमन सीता कै बानी। बिरह बिबेक धरम निति सानी।।
लोचन सजल जोरि कर दोऊ। प्रभु सन कछु कहि सकत न ओऊ।।
देखि राम रुख लछिमन धाए। पावक प्रगटि काठ बहु लाए।।
पावक प्रबल देखि बैदेही। हृदयँ हरष नहिं भय कछु तेही।।
जौं मन बच क्रम मम उर माहीं। तजि रघुबीर आन गति नाहीं।।
तौ कृसानु सब कै गति जाना। मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना।।

1.2.109

चौपाई
राम सप्रेम कहेउ मुनि पाहीं। नाथ कहिअ हम केहि मग जाहीं।।
मुनि मन बिहसि राम सन कहहीं। सुगम सकल मग तुम्ह कहुँ अहहीं।।
साथ लागि मुनि सिष्य बोलाए। सुनि मन मुदित पचासक आए।।
सबन्हि राम पर प्रेम अपारा। सकल कहहि मगु दीख हमारा।।
मुनि बटु चारि संग तब दीन्हे। जिन्ह बहु जनम सुकृत सब कीन्हे।।
करि प्रनामु रिषि आयसु पाई। प्रमुदित हृदयँ चले रघुराई।।
ग्राम निकट जब निकसहि जाई। देखहि दरसु नारि नर धाई।।
होहि सनाथ जनम फलु पाई। फिरहि दुखित मनु संग पठाई।।

1.1.109

चौपाई
जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ।।
अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू।।
मै बन दीखि राम प्रभुताई। अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई।।
तदपि मलिन मन बोधु न आवा। सो फलु भली भाँति हम पावा।।
अजहूँ कछु संसउ मन मोरे। करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें।।
प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा। नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा।।
तब कर अस बिमोह अब नाहीं। रामकथा पर रुचि मन माहीं।।
कहहु पुनीत राम गुन गाथा। भुजगराज भूषन सुरनाथा।।

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