10

2.3.10

चौपाई
মুনি অগস্তি কর সিষ্য সুজানা৷ নাম সুতীছন রতি ভগবানা৷৷
মন ক্রম বচন রাম পদ সেবক৷ সপনেহুআন ভরোস ন দেবক৷৷
প্রভু আগবনু শ্রবন সুনি পাবা৷ করত মনোরথ আতুর ধাবা৷৷
হে বিধি দীনবংধু রঘুরাযা৷ মো সে সঠ পর করিহহিং দাযা৷৷
সহিত অনুজ মোহি রাম গোসাঈ৷ মিলিহহিং নিজ সেবক কী নাঈ৷৷
মোরে জিযভরোস দৃঢ় নাহীং৷ ভগতি বিরতি ন গ্যান মন মাহীং৷৷
নহিং সতসংগ জোগ জপ জাগা৷ নহিং দৃঢ় চরন কমল অনুরাগা৷৷
এক বানি করুনানিধান কী৷ সো প্রিয জাকেং গতি ন আন কী৷৷
হোইহৈং সুফল আজু মম লোচন৷ দেখি বদন পংকজ ভব মোচন৷৷

2.2.10

चौपाई
বরনি রাম গুন সীলু সুভাঊ৷ বোলে প্রেম পুলকি মুনিরাঊ৷৷
ভূপ সজেউ অভিষেক সমাজূ৷ চাহত দেন তুম্হহি জুবরাজূ৷৷
রাম করহু সব সংজম আজূ৷ জৌং বিধি কুসল নিবাহৈ কাজূ৷৷
গুরু সিখ দেই রায পহিং গযউ৷ রাম হৃদযঅস বিসমউ ভযঊ৷৷
জনমে এক সংগ সব ভাঈ৷ ভোজন সযন কেলি লরিকাঈ৷৷
করনবেধ উপবীত বিআহা৷ সংগ সংগ সব ভএ উছাহা৷৷
বিমল বংস যহু অনুচিত একূ৷ বংধু বিহাই বড়েহি অভিষেকূ৷৷
প্রভু সপ্রেম পছিতানি সুহাঈ৷ হরউ ভগত মন কৈ কুটিলাঈ৷৷

2.1.10

चौपाई
এহি মহরঘুপতি নাম উদারা৷ অতি পাবন পুরান শ্রুতি সারা৷৷
মংগল ভবন অমংগল হারী৷ উমা সহিত জেহি জপত পুরারী৷৷
ভনিতি বিচিত্র সুকবি কৃত জোঊ৷ রাম নাম বিনু সোহ ন সোঊ৷৷
বিধুবদনী সব ভাি সারী৷ সোন ন বসন বিনা বর নারী৷৷
সব গুন রহিত কুকবি কৃত বানী৷ রাম নাম জস অংকিত জানী৷৷
সাদর কহহিং সুনহিং বুধ তাহী৷ মধুকর সরিস সংত গুনগ্রাহী৷৷
জদপি কবিত রস একউ নাহী৷ রাম প্রতাপ প্রকট এহি মাহীং৷৷
সোই ভরোস মোরেং মন আবা৷ কেহিং ন সুসংগ বডপ্পনু পাবা৷৷
ধূমউ তজই সহজ করুআঈ৷ অগরু প্রসংগ সুগংধ বসাঈ৷৷

1.7.10

चौपाई
प्रभु जानी कैकेई लजानी। प्रथम तासु गृह गए भवानी।।
ताहि प्रबोधि बहुत सुख दीन्हा। पुनि निज भवन गवन हरि कीन्हा।।
कृपासिंधु जब मंदिर गए। पुर नर नारि सुखी सब भए।।
गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई। आजु सुघरी सुदिन समुदाई।।
सब द्विज देहु हरषि अनुसासन। रामचंद्र बैठहिं सिंघासन।।
मुनि बसिष्ट के बचन सुहाए। सुनत सकल बिप्रन्ह अति भाए।।
कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका। जग अभिराम राम अभिषेका।।
अब मुनिबर बिलंब नहिं कीजे। महाराज कहँ तिलक करीजै।।

1.6.10

चौपाई
यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा।।
सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई।।
अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई।।
सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा।।
हित मत तोहि न लागत कैसें। काल बिबस कहुँ भेषज जैसें।।
संध्या समय जानि दससीसा। भवन चलेउ निरखत भुज बीसा।।
लंका सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा।।
बैठ जाइ तेही मंदिर रावन। लागे किंनर गुन गन गावन।।
बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना।।

1.5.10

चौपाई
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।।
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।।
स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।।
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।।
चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।।
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।।
सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।।
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।।
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।।

1.4.10

चौपाई
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी।।
अचल करौं तनु राखहु प्राना। बालि कहा सुनु कृपानिधाना।।
जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं।।
जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अविनासी।।
मम लोचन गोचर सोइ आवा। बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा।।

1.3.10

चौपाई
मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना। नाम सुतीछन रति भगवाना।।
मन क्रम बचन राम पद सेवक। सपनेहुँ आन भरोस न देवक।।
प्रभु आगवनु श्रवन सुनि पावा। करत मनोरथ आतुर धावा।।
हे बिधि दीनबंधु रघुराया। मो से सठ पर करिहहिं दाया।।
सहित अनुज मोहि राम गोसाई। मिलिहहिं निज सेवक की नाई।।
मोरे जियँ भरोस दृढ़ नाहीं। भगति बिरति न ग्यान मन माहीं।।
नहिं सतसंग जोग जप जागा। नहिं दृढ़ चरन कमल अनुरागा।।
एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की।।
होइहैं सुफल आजु मम लोचन। देखि बदन पंकज भव मोचन।।

1.2.10

चौपाई
बरनि राम गुन सीलु सुभाऊ। बोले प्रेम पुलकि मुनिराऊ।।
भूप सजेउ अभिषेक समाजू। चाहत देन तुम्हहि जुबराजू।।
राम करहु सब संजम आजू। जौं बिधि कुसल निबाहै काजू।।
गुरु सिख देइ राय पहिं गयउ। राम हृदयँ अस बिसमउ भयऊ।।
जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन केलि लरिकाई।।
करनबेध उपबीत बिआहा। संग संग सब भए उछाहा।।
बिमल बंस यहु अनुचित एकू। बंधु बिहाइ बड़ेहि अभिषेकू।।
प्रभु सप्रेम पछितानि सुहाई। हरउ भगत मन कै कुटिलाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.10

चौपाई
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोन न बसन बिना बर नारी।।
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अंकित जानी।।
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस संत गुनग्राही।।
जदपि कबित रस एकउ नाही। राम प्रताप प्रकट एहि माहीं।।
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसंग बडप्पनु पावा।।
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसंग सुगंध बसाई।।

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