110

3.2.110

चौपाई
સુનત તીરવાસી નર નારી। ધાએ નિજ નિજ કાજ બિસારી।।
લખન રામ સિય સુન્દરતાઈ। દેખિ કરહિં નિજ ભાગ્ય બડ઼ાઈ।।
અતિ લાલસા બસહિં મન માહીં। નાઉગાઉબૂઝત સકુચાહીં।।
જે તિન્હ મહુબયબિરિધ સયાને। તિન્હ કરિ જુગુતિ રામુ પહિચાને।।
સકલ કથા તિન્હ સબહિ સુનાઈ। બનહિ ચલે પિતુ આયસુ પાઈ।।
સુનિ સબિષાદ સકલ પછિતાહીં। રાની રાયકીન્હ ભલ નાહીં।।
તેહિ અવસર એક તાપસુ આવા। તેજપુંજ લઘુબયસ સુહાવા।।
કવિ અલખિત ગતિ બેષુ બિરાગી। મન ક્રમ બચન રામ અનુરાગી।।

3.1.110

चौपाई
જદપિ જોષિતા નહિં અધિકારી। દાસી મન ક્રમ બચન તુમ્હારી।।
ગૂઢ઼ઉ તત્વ ન સાધુ દુરાવહિં। આરત અધિકારી જહપાવહિં।।
અતિ આરતિ પૂછઉસુરરાયા। રઘુપતિ કથા કહહુ કરિ દાયા।।
પ્રથમ સો કારન કહહુ બિચારી। નિર્ગુન બ્રહ્મ સગુન બપુ ધારી।।
પુનિ પ્રભુ કહહુ રામ અવતારા। બાલચરિત પુનિ કહહુ ઉદારા।।
કહહુ જથા જાનકી બિબાહીં। રાજ તજા સો દૂષન કાહીં।।
બન બસિ કીન્હે ચરિત અપારા। કહહુ નાથ જિમિ રાવન મારા।।
રાજ બૈઠિ કીન્હીં બહુ લીલા। સકલ કહહુ સંકર સુખલીલા।।

2.7.110

चौपाई
ত্রিজগ দেব নর জোই তনু ধরউ তহতহরাম ভজন অনুসরঊ৷
এক সূল মোহি বিসর ন কাঊ৷ গুর কর কোমল সীল সুভাঊ৷৷
চরম দেহ দ্বিজ কৈ মৈং পাঈ৷ সুর দুর্লভ পুরান শ্রুতি গাঈ৷৷
খেলউতহূবালকন্হ মীলা৷ করউসকল রঘুনাযক লীলা৷৷
প্রৌঢ় ভএমোহি পিতা পঢ়াবা৷ সমঝউসুনউগুনউনহিং ভাবা৷৷
মন তে সকল বাসনা ভাগী৷ কেবল রাম চরন লয লাগী৷৷
কহু খগেস অস কবন অভাগী৷ খরী সেব সুরধেনুহি ত্যাগী৷৷
প্রেম মগন মোহি কছু ন সোহাঈ৷ হারেউ পিতা পঢ়াই পঢ়াঈ৷৷
ভএ কালবস জব পিতু মাতা৷ মৈং বন গযউভজন জনত্রাতা৷৷
জহজহবিপিন মুনীস্বর পাবউ আশ্রম জাই জাই সিরু নাবউ৷

2.6.110

चौपाई
তব রঘুপতি অনুসাসন পাঈ৷ মাতলি চলেউ চরন সিরু নাঈ৷৷
আএ দেব সদা স্বারথী৷ বচন কহহিং জনু পরমারথী৷৷
দীন বংধু দযাল রঘুরাযা৷ দেব কীন্হি দেবন্হ পর দাযা৷৷
বিস্ব দ্রোহ রত যহ খল কামী৷ নিজ অঘ গযউ কুমারগগামী৷৷
তুম্হ সমরূপ ব্রহ্ম অবিনাসী৷ সদা একরস সহজ উদাসী৷৷
অকল অগুন অজ অনঘ অনাময৷ অজিত অমোঘসক্তি করুনাময৷৷
মীন কমঠ সূকর নরহরী৷ বামন পরসুরাম বপু ধরী৷৷
জব জব নাথ সুরন্হ দুখু পাযো৷ নানা তনু ধরি তুম্হইনসাযো৷৷
যহ খল মলিন সদা সুরদ্রোহী৷ কাম লোভ মদ রত অতি কোহী৷৷
অধম সিরোমনি তব পদ পাবা৷ যহ হমরে মন বিসময আবা৷৷

2.2.110

चौपाई
সুনত তীরবাসী নর নারী৷ ধাএ নিজ নিজ কাজ বিসারী৷৷
লখন রাম সিয সুন্দরতাঈ৷ দেখি করহিং নিজ ভাগ্য বড়াঈ৷৷
অতি লালসা বসহিং মন মাহীং৷ নাউগাউবূঝত সকুচাহীং৷৷
জে তিন্হ মহুবযবিরিধ সযানে৷ তিন্হ করি জুগুতি রামু পহিচানে৷৷
সকল কথা তিন্হ সবহি সুনাঈ৷ বনহি চলে পিতু আযসু পাঈ৷৷
সুনি সবিষাদ সকল পছিতাহীং৷ রানী রাযকীন্হ ভল নাহীং৷৷
তেহি অবসর এক তাপসু আবা৷ তেজপুংজ লঘুবযস সুহাবা৷৷
কবি অলখিত গতি বেষু বিরাগী৷ মন ক্রম বচন রাম অনুরাগী৷৷

2.1.110

चौपाई
জদপি জোষিতা নহিং অধিকারী৷ দাসী মন ক্রম বচন তুম্হারী৷৷
গূঢ়উ তত্ব ন সাধু দুরাবহিং৷ আরত অধিকারী জহপাবহিং৷৷
অতি আরতি পূছউসুররাযা৷ রঘুপতি কথা কহহু করি দাযা৷৷
প্রথম সো কারন কহহু বিচারী৷ নির্গুন ব্রহ্ম সগুন বপু ধারী৷৷
পুনি প্রভু কহহু রাম অবতারা৷ বালচরিত পুনি কহহু উদারা৷৷
কহহু জথা জানকী বিবাহীং৷ রাজ তজা সো দূষন কাহীং৷৷
বন বসি কীন্হে চরিত অপারা৷ কহহু নাথ জিমি রাবন মারা৷৷
রাজ বৈঠি কীন্হীং বহু লীলা৷ সকল কহহু সংকর সুখলীলা৷৷

1.7.110

चौपाई
त्रिजग देव नर जोइ तनु धरउँ। तहँ तहँ राम भजन अनुसरऊँ।।
एक सूल मोहि बिसर न काऊ। गुर कर कोमल सील सुभाऊ।।
चरम देह द्विज कै मैं पाई। सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गाई।।
खेलउँ तहूँ बालकन्ह मीला। करउँ सकल रघुनायक लीला।।
प्रौढ़ भएँ मोहि पिता पढ़ावा। समझउँ सुनउँ गुनउँ नहिं भावा।।
मन ते सकल बासना भागी। केवल राम चरन लय लागी।।
कहु खगेस अस कवन अभागी। खरी सेव सुरधेनुहि त्यागी।।
प्रेम मगन मोहि कछु न सोहाई। हारेउ पिता पढ़ाइ पढ़ाई।।
भए कालबस जब पितु माता। मैं बन गयउँ भजन जनत्राता।।

1.6.110

चौपाई
तब रघुपति अनुसासन पाई। मातलि चलेउ चरन सिरु नाई।।
आए देव सदा स्वारथी। बचन कहहिं जनु परमारथी।।
दीन बंधु दयाल रघुराया। देव कीन्हि देवन्ह पर दाया।।
बिस्व द्रोह रत यह खल कामी। निज अघ गयउ कुमारगगामी।।
तुम्ह समरूप ब्रह्म अबिनासी। सदा एकरस सहज उदासी।।
अकल अगुन अज अनघ अनामय। अजित अमोघसक्ति करुनामय।।
मीन कमठ सूकर नरहरी। बामन परसुराम बपु धरी।।
जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो। नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो।।
यह खल मलिन सदा सुरद्रोही। काम लोभ मद रत अति कोही।।
अधम सिरोमनि तव पद पावा। यह हमरे मन बिसमय आवा।।

1.2.110

चौपाई
सुनत तीरवासी नर नारी। धाए निज निज काज बिसारी।।
लखन राम सिय सुन्दरताई। देखि करहिं निज भाग्य बड़ाई।।
अति लालसा बसहिं मन माहीं। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं।।
जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने। तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने।।
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई। बनहि चले पितु आयसु पाई।।
सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं। रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं।।
तेहि अवसर एक तापसु आवा। तेजपुंज लघुबयस सुहावा।।
कवि अलखित गति बेषु बिरागी। मन क्रम बचन राम अनुरागी।।

दोहा/सोरठा

1.1.110

चौपाई
जदपि जोषिता नहिं अधिकारी। दासी मन क्रम बचन तुम्हारी।।
गूढ़उ तत्व न साधु दुरावहिं। आरत अधिकारी जहँ पावहिं।।
अति आरति पूछउँ सुरराया। रघुपति कथा कहहु करि दाया।।
प्रथम सो कारन कहहु बिचारी। निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी।।
पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा। बालचरित पुनि कहहु उदारा।।
कहहु जथा जानकी बिबाहीं। राज तजा सो दूषन काहीं।।
बन बसि कीन्हे चरित अपारा। कहहु नाथ जिमि रावन मारा।।
राज बैठि कीन्हीं बहु लीला। सकल कहहु संकर सुखलीला।।

दोहा/सोरठा

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