112

3.2.112

चौपाई
પુનિ સિયરામ લખન કર જોરી। જમુનહિ કીન્હ પ્રનામુ બહોરી।।
ચલે સસીય મુદિત દોઉ ભાઈ। રબિતનુજા કઇ કરત બડ઼ાઈ।।
પથિક અનેક મિલહિં મગ જાતા। કહહિં સપ્રેમ દેખિ દોઉ ભ્રાતા।।
રાજ લખન સબ અંગ તુમ્હારેં। દેખિ સોચુ અતિ હૃદય હમારેં।।
મારગ ચલહુ પયાદેહિ પાએ જ્યોતિષુ ઝૂઠ હમારેં ભાએ।
અગમુ પંથ ગિરિ કાનન ભારી। તેહિ મહસાથ નારિ સુકુમારી।।
કરિ કેહરિ બન જાઇ ન જોઈ। હમ સ ચલહિ જો આયસુ હોઈ।।
જાબ જહાલગિ તહપહુાઈ। ફિરબ બહોરિ તુમ્હહિ સિરુ નાઈ।।

3.1.112

चौपाई
કરિ પ્રનામ રામહિ ત્રિપુરારી। હરષિ સુધા સમ ગિરા ઉચારી।।
ધન્ય ધન્ય ગિરિરાજકુમારી। તુમ્હ સમાન નહિં કોઉ ઉપકારી।।
પૂેહુ રઘુપતિ કથા પ્રસંગા। સકલ લોક જગ પાવનિ ગંગા।।
તુમ્હ રઘુબીર ચરન અનુરાગી। કીન્હહુ પ્રસ્ન જગત હિત લાગી।।
ઝૂઠેઉ સત્ય જાહિ બિનુ જાનેં। જિમિ ભુજંગ બિનુ રજુ પહિચાનેં।।
જેહિ જાનેં જગ જાઇ હેરાઈ। જાગેં જથા સપન ભ્રમ જાઈ।।
બંદઉબાલરૂપ સોઈ રામૂ। સબ સિધિ સુલભ જપત જિસુ નામૂ।।
મંગલ ભવન અમંગલ હારી। દ્રવઉ સો દસરથ અજિર બિહારી।।

2.7.112

चौपाई
কবহুকি দুখ সব কর হিত তাকেং৷ তেহি কি দরিদ্র পরস মনি জাকেং৷৷
পরদ্রোহী কী হোহিং নিসংকা৷ কামী পুনি কি রহহিং অকলংকা৷৷
বংস কি রহ দ্বিজ অনহিত কীন্হেং৷ কর্ম কি হোহিং স্বরূপহি চীন্হেং৷৷
কাহূ সুমতি কি খল স জামী৷ সুভ গতি পাব কি পরত্রিয গামী৷৷
ভব কি পরহিং পরমাত্মা বিংদক৷ সুখী কি হোহিং কবহুহরিনিংদক৷৷
রাজু কি রহই নীতি বিনু জানেং৷ অঘ কি রহহিং হরিচরিত বখানেং৷৷
পাবন জস কি পুন্য বিনু হোঈ৷ বিনু অঘ অজস কি পাবই কোঈ৷৷
লাভু কি কিছু হরি ভগতি সমানা৷ জেহি গাবহিং শ্রুতি সংত পুরানা৷৷

2.6.112

चौपाई
তেহি অবসর দসরথ তহআএ৷ তনয বিলোকি নযন জল ছাএ৷৷
অনুজ সহিত প্রভু বংদন কীন্হা৷ আসিরবাদ পিতাতব দীন্হা৷৷
তাত সকল তব পুন্য প্রভাঊ৷ জীত্যোং অজয নিসাচর রাঊ৷৷
সুনি সুত বচন প্রীতি অতি বাঢ়ী৷ নযন সলিল রোমাবলি ঠাঢ়ী৷৷
রঘুপতি প্রথম প্রেম অনুমানা৷ চিতই পিতহি দীন্হেউ দৃঢ় গ্যানা৷৷
তাতে উমা মোচ্ছ নহিং পাযো৷ দসরথ ভেদ ভগতি মন লাযো৷৷
সগুনোপাসক মোচ্ছ ন লেহীং৷ তিন্হ কহুরাম ভগতি নিজ দেহীং৷৷
বার বার করি প্রভুহি প্রনামা৷ দসরথ হরষি গএ সুরধামা৷৷

2.2.112

चौपाई
পুনি সিযরাম লখন কর জোরী৷ জমুনহি কীন্হ প্রনামু বহোরী৷৷
চলে সসীয মুদিত দোউ ভাঈ৷ রবিতনুজা কই করত বড়াঈ৷৷
পথিক অনেক মিলহিং মগ জাতা৷ কহহিং সপ্রেম দেখি দোউ ভ্রাতা৷৷
রাজ লখন সব অংগ তুম্হারেং৷ দেখি সোচু অতি হৃদয হমারেং৷৷
মারগ চলহু পযাদেহি পাএ জ্যোতিষু ঝূঠ হমারেং ভাএ৷
অগমু পংথ গিরি কানন ভারী৷ তেহি মহসাথ নারি সুকুমারী৷৷
করি কেহরি বন জাই ন জোঈ৷ হম স চলহি জো আযসু হোঈ৷৷
জাব জহালগি তহপহুাঈ৷ ফিরব বহোরি তুম্হহি সিরু নাঈ৷৷

2.1.112

चौपाई
করি প্রনাম রামহি ত্রিপুরারী৷ হরষি সুধা সম গিরা উচারী৷৷
ধন্য ধন্য গিরিরাজকুমারী৷ তুম্হ সমান নহিং কোউ উপকারী৷৷
পূেহু রঘুপতি কথা প্রসংগা৷ সকল লোক জগ পাবনি গংগা৷৷
তুম্হ রঘুবীর চরন অনুরাগী৷ কীন্হহু প্রস্ন জগত হিত লাগী৷৷
ঝূঠেউ সত্য জাহি বিনু জানেং৷ জিমি ভুজংগ বিনু রজু পহিচানেং৷৷
জেহি জানেং জগ জাই হেরাঈ৷ জাগেং জথা সপন ভ্রম জাঈ৷৷
বংদউবালরূপ সোঈ রামূ৷ সব সিধি সুলভ জপত জিসু নামূ৷৷
মংগল ভবন অমংগল হারী৷ দ্রবউ সো দসরথ অজির বিহারী৷৷

1.7.112

चौपाई
कबहुँ कि दुख सब कर हित ताकें। तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें।।
परद्रोही की होहिं निसंका। कामी पुनि कि रहहिं अकलंका।।
बंस कि रह द्विज अनहित कीन्हें। कर्म कि होहिं स्वरूपहि चीन्हें।।
काहू सुमति कि खल सँग जामी। सुभ गति पाव कि परत्रिय गामी।।
भव कि परहिं परमात्मा बिंदक। सुखी कि होहिं कबहुँ हरिनिंदक।।
राजु कि रहइ नीति बिनु जानें। अघ कि रहहिं हरिचरित बखानें।।
पावन जस कि पुन्य बिनु होई। बिनु अघ अजस कि पावइ कोई।।
लाभु कि किछु हरि भगति समाना। जेहि गावहिं श्रुति संत पुराना।।

1.6.112

चौपाई
तेहि अवसर दसरथ तहँ आए। तनय बिलोकि नयन जल छाए।।
अनुज सहित प्रभु बंदन कीन्हा। आसिरबाद पिताँ तब दीन्हा।।
तात सकल तव पुन्य प्रभाऊ। जीत्यों अजय निसाचर राऊ।।
सुनि सुत बचन प्रीति अति बाढ़ी। नयन सलिल रोमावलि ठाढ़ी।।
रघुपति प्रथम प्रेम अनुमाना। चितइ पितहि दीन्हेउ दृढ़ ग्याना।।
ताते उमा मोच्छ नहिं पायो। दसरथ भेद भगति मन लायो।।
सगुनोपासक मोच्छ न लेहीं। तिन्ह कहुँ राम भगति निज देहीं।।
बार बार करि प्रभुहि प्रनामा। दसरथ हरषि गए सुरधामा।।

1.2.112

चौपाई
पुनि सियँ राम लखन कर जोरी। जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी।।
चले ससीय मुदित दोउ भाई। रबितनुजा कइ करत बड़ाई।।
पथिक अनेक मिलहिं मग जाता। कहहिं सप्रेम देखि दोउ भ्राता।।
राज लखन सब अंग तुम्हारें। देखि सोचु अति हृदय हमारें।।
मारग चलहु पयादेहि पाएँ। ज्योतिषु झूठ हमारें भाएँ।।
अगमु पंथ गिरि कानन भारी। तेहि महँ साथ नारि सुकुमारी।।
करि केहरि बन जाइ न जोई। हम सँग चलहि जो आयसु होई।।
जाब जहाँ लगि तहँ पहुँचाई। फिरब बहोरि तुम्हहि सिरु नाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.112

चौपाई
झूठेउ सत्य जाहि बिनु जानें। जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचानें।। 
जेहि जानें जग जाइ हेराई। जागें जथा सपन भ्रम जाई।।
बंदउँ बालरूप सोई रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू।। 
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।।
करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।।
धन्य धन्य गिरिराजकुमारी। तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी।।
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा।।
तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हहु प्रस्न जगत हित लागी।।

दोहा/सोरठा

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