116

3.2.116

चौपाई
બરનિ ન જાઇ મનોહર જોરી। સોભા બહુત થોરિ મતિ મોરી।।
રામ લખન સિય સુંદરતાઈ। સબ ચિતવહિં ચિત મન મતિ લાઈ।।
થકે નારિ નર પ્રેમ પિઆસે। મનહુમૃગી મૃગ દેખિ દિઆ સે।।
સીય સમીપ ગ્રામતિય જાહીં। પૂત અતિ સનેહસકુચાહીં।।
બાર બાર સબ લાગહિં પાએ કહહિં બચન મૃદુ સરલ સુભાએ।
રાજકુમારિ બિનય હમ કરહીં। તિય સુભાયકછુ પૂત ડરહીં।
સ્વામિનિ અબિનય છમબિ હમારી। બિલગુ ન માનબ જાનિ ગવાી।।
રાજકુઅ દોઉ સહજ સલોને। ઇન્હ તેં લહી દુતિ મરકત સોને।।

3.1.116

चौपाई
સગુનહિ અગુનહિ નહિં કછુ ભેદા। ગાવહિં મુનિ પુરાન બુધ બેદા।।
અગુન અરુપ અલખ અજ જોઈ। ભગત પ્રેમ બસ સગુન સો હોઈ।।
જો ગુન રહિત સગુન સોઇ કૈસેં। જલુ હિમ ઉપલ બિલગ નહિં જૈસેં।।
જાસુ નામ ભ્રમ તિમિર પતંગા। તેહિ કિમિ કહિઅ બિમોહ પ્રસંગા।।
રામ સચ્ચિદાનંદ દિનેસા। નહિં તહમોહ નિસા લવલેસા।।
સહજ પ્રકાસરુપ ભગવાના। નહિં તહપુનિ બિગ્યાન બિહાના।।
હરષ બિષાદ ગ્યાન અગ્યાના। જીવ ધર્મ અહમિતિ અભિમાના।।
રામ બ્રહ્મ બ્યાપક જગ જાના। પરમાનન્દ પરેસ પુરાના।।

2.7.116

चौपाई
ইহান পচ্ছপাত কছু রাখউ বেদ পুরান সংত মত ভাষউ৷
মোহ ন নারি নারি কেং রূপা৷ পন্নগারি যহ রীতি অনূপা৷৷
মাযা ভগতি সুনহু তুম্হ দোঊ৷ নারি বর্গ জানই সব কোঊ৷৷
পুনি রঘুবীরহি ভগতি পিআরী৷ মাযা খলু নর্তকী বিচারী৷৷
ভগতিহি সানুকূল রঘুরাযা৷ তাতে তেহি ডরপতি অতি মাযা৷৷
রাম ভগতি নিরুপম নিরুপাধী৷ বসই জাসু উর সদা অবাধী৷৷
তেহি বিলোকি মাযা সকুচাঈ৷ করি ন সকই কছু নিজ প্রভুতাঈ৷৷
অস বিচারি জে মুনি বিগ্যানী৷ জাচহীং ভগতি সকল সুখ খানী৷৷

2.6.116

चौपाई
করি বিনতী জব সংভু সিধাএ৷ তব প্রভু নিকট বিভীষনু আএ৷৷
নাই চরন সিরু কহ মৃদু বানী৷ বিনয সুনহু প্রভু সারপানী৷৷
সকুল সদল প্রভু রাবন মার্ যো৷ পাবন জস ত্রিভুবন বিস্তার্ যো৷৷
দীন মলীন হীন মতি জাতী৷ মো পর কৃপা কীন্হি বহু ভাী৷৷
অব জন গৃহ পুনীত প্রভু কীজে৷ মজ্জনু করিঅ সমর শ্রম ছীজে৷৷
দেখি কোস মংদির সংপদা৷ দেহু কৃপাল কপিন্হ কহুমুদা৷৷
সব বিধি নাথ মোহি অপনাইঅ৷ পুনি মোহি সহিত অবধপুর জাইঅ৷৷
সুনত বচন মৃদু দীনদযালা৷ সজল ভএ দ্বৌ নযন বিসালা৷৷

2.2.116

चौपाई
বরনি ন জাই মনোহর জোরী৷ সোভা বহুত থোরি মতি মোরী৷৷
রাম লখন সিয সুংদরতাঈ৷ সব চিতবহিং চিত মন মতি লাঈ৷৷
থকে নারি নর প্রেম পিআসে৷ মনহুমৃগী মৃগ দেখি দিআ সে৷৷
সীয সমীপ গ্রামতিয জাহীং৷ পূত অতি সনেহসকুচাহীং৷৷
বার বার সব লাগহিং পাএ কহহিং বচন মৃদু সরল সুভাএ৷
রাজকুমারি বিনয হম করহীং৷ তিয সুভাযকছু পূত ডরহীং৷
স্বামিনি অবিনয ছমবি হমারী৷ বিলগু ন মানব জানি গবাী৷৷
রাজকুঅ দোউ সহজ সলোনে৷ ইন্হ তেং লহী দুতি মরকত সোনে৷৷

2.1.116

चौपाई
সগুনহি অগুনহি নহিং কছু ভেদা৷ গাবহিং মুনি পুরান বুধ বেদা৷৷
অগুন অরুপ অলখ অজ জোঈ৷ ভগত প্রেম বস সগুন সো হোঈ৷৷
জো গুন রহিত সগুন সোই কৈসেং৷ জলু হিম উপল বিলগ নহিং জৈসেং৷৷
জাসু নাম ভ্রম তিমির পতংগা৷ তেহি কিমি কহিঅ বিমোহ প্রসংগা৷৷
রাম সচ্চিদানংদ দিনেসা৷ নহিং তহমোহ নিসা লবলেসা৷৷
সহজ প্রকাসরুপ ভগবানা৷ নহিং তহপুনি বিগ্যান বিহানা৷৷
হরষ বিষাদ গ্যান অগ্যানা৷ জীব ধর্ম অহমিতি অভিমানা৷৷
রাম ব্রহ্ম ব্যাপক জগ জানা৷ পরমানন্দ পরেস পুরানা৷৷

1.7.116

चौपाई
इहाँ न पच्छपात कछु राखउँ। बेद पुरान संत मत भाषउँ।।
मोह न नारि नारि कें रूपा। पन्नगारि यह रीति अनूपा।।
माया भगति सुनहु तुम्ह दोऊ। नारि बर्ग जानइ सब कोऊ।।
पुनि रघुबीरहि भगति पिआरी। माया खलु नर्तकी बिचारी।।
भगतिहि सानुकूल रघुराया। ताते तेहि डरपति अति माया।।
राम भगति निरुपम निरुपाधी। बसइ जासु उर सदा अबाधी।।
तेहि बिलोकि माया सकुचाई। करि न सकइ कछु निज प्रभुताई।।
अस बिचारि जे मुनि बिग्यानी। जाचहीं भगति सकल सुख खानी।।

1.6.116

चौपाई
करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए।।
नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी।।
सकुल सदल प्रभु रावन मार् यो। पावन जस त्रिभुवन बिस्तार् यो।।
दीन मलीन हीन मति जाती। मो पर कृपा कीन्हि बहु भाँती।।
अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे। मज्जनु करिअ समर श्रम छीजे।।
देखि कोस मंदिर संपदा। देहु कृपाल कपिन्ह कहुँ मुदा।।
सब बिधि नाथ मोहि अपनाइअ। पुनि मोहि सहित अवधपुर जाइअ।।
सुनत बचन मृदु दीनदयाला। सजल भए द्वौ नयन बिसाला।।

1.2.116

चौपाई
बरनि न जाइ मनोहर जोरी। सोभा बहुत थोरि मति मोरी।।
राम लखन सिय सुंदरताई। सब चितवहिं चित मन मति लाई।।
थके नारि नर प्रेम पिआसे। मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से।।
सीय समीप ग्रामतिय जाहीं। पूँछत अति सनेहँ सकुचाहीं।।
बार बार सब लागहिं पाएँ। कहहिं बचन मृदु सरल सुभाएँ।।
राजकुमारि बिनय हम करहीं। तिय सुभायँ कछु पूँछत डरहीं।
स्वामिनि अबिनय छमबि हमारी। बिलगु न मानब जानि गवाँरी।।
राजकुअँर दोउ सहज सलोने। इन्ह तें लही दुति मरकत सोने।।

दोहा/सोरठा

1.1.116

चौपाई
सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।
अगुन अरुप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें।।
जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा। तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा।।
राम सच्चिदानंद दिनेसा। नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
सहज प्रकासरुप भगवाना। नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना।।
हरष बिषाद ग्यान अग्याना। जीव धर्म अहमिति अभिमाना।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना। परमानन्द परेस पुराना।।

दोहा/सोरठा

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