117

3.2.117

चौपाई
કોટિ મનોજ લજાવનિહારે। સુમુખિ કહહુ કો આહિં તુમ્હારે।।
સુનિ સનેહમય મંજુલ બાની। સકુચી સિય મન મહુમુસુકાની।।
તિન્હહિ બિલોકિ બિલોકતિ ધરની। દુહુસકોચ સકુચિત બરબરની।।
સકુચિ સપ્રેમ બાલ મૃગ નયની। બોલી મધુર બચન પિકબયની।।
સહજ સુભાય સુભગ તન ગોરે। નામુ લખનુ લઘુ દેવર મોરે।।
બહુરિ બદનુ બિધુ અંચલ ઢાી। પિય તન ચિતઇ ભૌંહ કરિ બાી।।
ખંજન મંજુ તિરીછે નયનનિ। નિજ પતિ કહેઉ તિન્હહિ સિયસયનનિ।।
ભઇ મુદિત સબ ગ્રામબધૂટીં। રંકન્હ રાય રાસિ જનુ લૂટીં।।

3.1.117

चौपाई
નિજ ભ્રમ નહિં સમુઝહિં અગ્યાની। પ્રભુ પર મોહ ધરહિં જડ઼ પ્રાની।।
જથા ગગન ઘન પટલ નિહારી। ઝાેઉ માનુ કહહિં કુબિચારી।।
ચિતવ જો લોચન અંગુલિ લાએ પ્રગટ જુગલ સસિ તેહિ કે ભાએ।
ઉમા રામ બિષઇક અસ મોહા। નભ તમ ધૂમ ધૂરિ જિમિ સોહા।।
બિષય કરન સુર જીવ સમેતા। સકલ એક તેં એક સચેતા।।
સબ કર પરમ પ્રકાસક જોઈ। રામ અનાદિ અવધપતિ સોઈ।।
જગત પ્રકાસ્ય પ્રકાસક રામૂ। માયાધીસ ગ્યાન ગુન ધામૂ।।
જાસુ સત્યતા તેં જડ માયા। ભાસ સત્ય ઇવ મોહ સહાયા।।

2.7.117

चौपाई
সুনহু তাত যহ অকথ কহানী৷ সমুঝত বনই ন জাই বখানী৷৷
ঈস্বর অংস জীব অবিনাসী৷ চেতন অমল সহজ সুখ রাসী৷৷
সো মাযাবস ভযউ গোসাঈং৷ ব্যো কীর মরকট কী নাঈ৷৷
জড় চেতনহি গ্রংথি পরি গঈ৷ জদপি মৃষা ছূটত কঠিনঈ৷৷
তব তে জীব ভযউ সংসারী৷ ছূট ন গ্রংথি ন হোই সুখারী৷৷
শ্রুতি পুরান বহু কহেউ উপাঈ৷ ছূট ন অধিক অধিক অরুঝাঈ৷৷
জীব হৃদযতম মোহ বিসেষী৷ গ্রংথি ছূট কিমি পরই ন দেখী৷৷
অস সংজোগ ঈস জব করঈ৷ তবহুকদাচিত সো নিরুঅরঈ৷৷
সাত্ত্বিক শ্রদ্ধা ধেনু সুহাঈ৷ জৌং হরি কৃপাহৃদযবস আঈ৷৷
জপ তপ ব্রত জম নিযম অপারা৷ জে শ্রুতি কহ সুভ ধর্ম অচারা৷৷

2.6.117

चौपाई
সুনত বিভীষন বচন রাম কে৷ হরষি গহে পদ কৃপাধাম কে৷৷
বানর ভালু সকল হরষানে৷ গহি প্রভু পদ গুন বিমল বখানে৷৷
বহুরি বিভীষন ভবন সিধাযো৷ মনি গন বসন বিমান ভরাযো৷৷
লৈ পুষ্পক প্রভু আগেং রাখা৷ হি করি কৃপাসিংধু তব ভাষা৷৷
চঢ়ি বিমান সুনু সখা বিভীষন৷ গগন জাই বরষহু পট ভূষন৷৷
নভ পর জাই বিভীষন তবহী৷ বরষি দিএ মনি অংবর সবহী৷৷
জোই জোই মন ভাবই সোই লেহীং৷ মনি মুখ মেলি ডারি কপি দেহীং৷৷
হে রামু শ্রী অনুজ সমেতা৷ পরম কৌতুকী কৃপা নিকেতা৷৷

2.2.117

चौपाई
কোটি মনোজ লজাবনিহারে৷ সুমুখি কহহু কো আহিং তুম্হারে৷৷
সুনি সনেহময মংজুল বানী৷ সকুচী সিয মন মহুমুসুকানী৷৷
তিন্হহি বিলোকি বিলোকতি ধরনী৷ দুহুসকোচ সকুচিত বরবরনী৷৷
সকুচি সপ্রেম বাল মৃগ নযনী৷ বোলী মধুর বচন পিকবযনী৷৷
সহজ সুভায সুভগ তন গোরে৷ নামু লখনু লঘু দেবর মোরে৷৷
বহুরি বদনু বিধু অংচল ঢাী৷ পিয তন চিতই ভৌংহ করি বাী৷৷
খংজন মংজু তিরীছে নযননি৷ নিজ পতি কহেউ তিন্হহি সিযসযননি৷৷
ভই মুদিত সব গ্রামবধূটীং৷ রংকন্হ রায রাসি জনু লূটীং৷৷

2.1.117

चौपाई
নিজ ভ্রম নহিং সমুঝহিং অগ্যানী৷ প্রভু পর মোহ ধরহিং জড় প্রানী৷৷
জথা গগন ঘন পটল নিহারী৷ ঝােউ মানু কহহিং কুবিচারী৷৷
চিতব জো লোচন অংগুলি লাএ প্রগট জুগল সসি তেহি কে ভাএ৷
উমা রাম বিষইক অস মোহা৷ নভ তম ধূম ধূরি জিমি সোহা৷৷
বিষয করন সুর জীব সমেতা৷ সকল এক তেং এক সচেতা৷৷
সব কর পরম প্রকাসক জোঈ৷ রাম অনাদি অবধপতি সোঈ৷৷
জগত প্রকাস্য প্রকাসক রামূ৷ মাযাধীস গ্যান গুন ধামূ৷৷
জাসু সত্যতা তেং জড মাযা৷ ভাস সত্য ইব মোহ সহাযা৷৷

1.7.117

चौपाई
सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी।।
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी।।
सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाई।।
जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई।।
तब ते जीव भयउ संसारी। छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी।।
श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई। छूट न अधिक अधिक अरुझाई।।
जीव हृदयँ तम मोह बिसेषी। ग्रंथि छूट किमि परइ न देखी।।
अस संजोग ईस जब करई। तबहुँ कदाचित सो निरुअरई।।
सात्त्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। जौं हरि कृपाँ हृदयँ बस आई।।

1.6.117

चौपाई
सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के।।
बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने।।
बहुरि बिभीषन भवन सिधायो। मनि गन बसन बिमान भरायो।।
लै पुष्पक प्रभु आगें राखा। हँसि करि कृपासिंधु तब भाषा।।
चढ़ि बिमान सुनु सखा बिभीषन। गगन जाइ बरषहु पट भूषन।।
नभ पर जाइ बिभीषन तबही। बरषि दिए मनि अंबर सबही।।
जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेहीं। मनि मुख मेलि डारि कपि देहीं।।
हँसे रामु श्री अनुज समेता। परम कौतुकी कृपा निकेता।।

1.2.117

चौपाई
कोटि मनोज लजावनिहारे। सुमुखि कहहु को आहिं तुम्हारे।।
सुनि सनेहमय मंजुल बानी। सकुची सिय मन महुँ मुसुकानी।।
तिन्हहि बिलोकि बिलोकति धरनी। दुहुँ सकोच सकुचित बरबरनी।।
सकुचि सप्रेम बाल मृग नयनी। बोली मधुर बचन पिकबयनी।।
सहज सुभाय सुभग तन गोरे। नामु लखनु लघु देवर मोरे।।
बहुरि बदनु बिधु अंचल ढाँकी। पिय तन चितइ भौंह करि बाँकी।।
खंजन मंजु तिरीछे नयननि। निज पति कहेउ तिन्हहि सियँ सयननि।।
भइ मुदित सब ग्रामबधूटीं। रंकन्ह राय रासि जनु लूटीं।।

1.1.117

चौपाई
निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी।।
जथा गगन घन पटल निहारी। झाँपेउ मानु कहहिं कुबिचारी।।
चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ।।
उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा।।
बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता।।
सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई।।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। मायाधीस ग्यान गुन धामू।।
जासु सत्यता तें जड माया। भास सत्य इव मोह सहाया।।

दोहा/सोरठा

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