118

3.2.118

चौपाई
પારબતી સમ પતિપ્રિય હોહૂ। દેબિ ન હમ પર છાડ઼બ છોહૂ।।
પુનિ પુનિ બિનય કરિઅ કર જોરી। જૌં એહિ મારગ ફિરિઅ બહોરી।।
દરસનુ દેબ જાનિ નિજ દાસી। લખીં સીયસબ પ્રેમ પિઆસી।।
મધુર બચન કહિ કહિ પરિતોષીં। જનુ કુમુદિનીં કૌમુદીં પોષીં।।
તબહિં લખન રઘુબર રુખ જાની। પૂેઉ મગુ લોગન્હિ મૃદુ બાની।।
સુનત નારિ નર ભએ દુખારી। પુલકિત ગાત બિલોચન બારી।।
મિટા મોદુ મન ભએ મલીને। બિધિ નિધિ દીન્હ લેત જનુ છીને।।
સમુઝિ કરમ ગતિ ધીરજુ કીન્હા। સોધિ સુગમ મગુ તિન્હ કહિ દીન્હા।।

3.1.118

चौपाई
એહિ બિધિ જગ હરિ આશ્રિત રહઈ। જદપિ અસત્ય દેત દુખ અહઈ।।
જૌં સપનેં સિર કાટૈ કોઈ। બિનુ જાગેં ન દૂરિ દુખ હોઈ।।
જાસુ કૃપાઅસ ભ્રમ મિટિ જાઈ। ગિરિજા સોઇ કૃપાલ રઘુરાઈ।।
આદિ અંત કોઉ જાસુ ન પાવા। મતિ અનુમાનિ નિગમ અસ ગાવા।।
બિનુ પદ ચલઇ સુનઇ બિનુ કાના। કર બિનુ કરમ કરઇ બિધિ નાના।।
આનન રહિત સકલ રસ ભોગી। બિનુ બાની બકતા બડ઼ જોગી।।
તનુ બિનુ પરસ નયન બિનુ દેખા। ગ્રહઇ ઘ્રાન બિનુ બાસ અસેષા।।
અસિ સબ ભાિ અલૌકિક કરની। મહિમા જાસુ જાઇ નહિં બરની।।

2.7.118

चौपाई
সোহমস্মি ইতি বৃত্তি অখংডা৷ দীপ সিখা সোই পরম প্রচংডা৷৷
আতম অনুভব সুখ সুপ্রকাসা৷ তব ভব মূল ভেদ ভ্রম নাসা৷৷
প্রবল অবিদ্যা কর পরিবারা৷ মোহ আদি তম মিটই অপারা৷৷
তব সোই বুদ্ধি পাই উিআরা৷ উর গৃহবৈঠি গ্রংথি নিরুআরা৷৷
ছোরন গ্রংথি পাব জৌং সোঈ৷ তব যহ জীব কৃতারথ হোঈ৷৷
ছোরত গ্রংথি জানি খগরাযা৷ বিঘ্ন অনেক করই তব মাযা৷৷
রিদ্ধি সিদ্ধি প্রেরই বহু ভাঈ৷ বুদ্ধহি লোভ দিখাবহিং আঈ৷৷
কল বল ছল করি জাহিং সমীপা৷ অংচল বাত বুঝাবহিং দীপা৷৷
হোই বুদ্ধি জৌং পরম সযানী৷ তিন্হ তন চিতব ন অনহিত জানী৷৷

2.6.118

चौपाई
ভালু কপিন্হ পট ভূষন পাএ৷ পহিরি পহিরি রঘুপতি পহিং আএ৷৷
নানা জিনস দেখি সব কীসা৷ পুনি পুনি হত কোসলাধীসা৷৷
চিতই সবন্হি পর কীন্হি দাযা৷ বোলে মৃদুল বচন রঘুরাযা৷৷
তুম্হরেং বল মৈং রাবনু মার্ যো৷ তিলক বিভীষন কহপুনি সার্ যো৷৷
নিজ নিজ গৃহ অব তুম্হ সব জাহূ৷ সুমিরেহু মোহি ডরপহু জনি কাহূ৷৷
সুনত বচন প্রেমাকুল বানর৷ জোরি পানি বোলে সব সাদর৷৷
প্রভু জোই কহহু তুম্হহি সব সোহা৷ হমরে হোত বচন সুনি মোহা৷৷
দীন জানি কপি কিএ সনাথা৷ তুম্হ ত্রেলোক ঈস রঘুনাথা৷৷
সুনি প্রভু বচন লাজ হম মরহীং৷ মসক কহূখগপতি হিত করহীং৷৷

2.2.118

चौपाई
পারবতী সম পতিপ্রিয হোহূ৷ দেবি ন হম পর ছাড়ব ছোহূ৷৷
পুনি পুনি বিনয করিঅ কর জোরী৷ জৌং এহি মারগ ফিরিঅ বহোরী৷৷
দরসনু দেব জানি নিজ দাসী৷ লখীং সীযসব প্রেম পিআসী৷৷
মধুর বচন কহি কহি পরিতোষীং৷ জনু কুমুদিনীং কৌমুদীং পোষীং৷৷
তবহিং লখন রঘুবর রুখ জানী৷ পূেউ মগু লোগন্হি মৃদু বানী৷৷
সুনত নারি নর ভএ দুখারী৷ পুলকিত গাত বিলোচন বারী৷৷
মিটা মোদু মন ভএ মলীনে৷ বিধি নিধি দীন্হ লেত জনু ছীনে৷৷
সমুঝি করম গতি ধীরজু কীন্হা৷ সোধি সুগম মগু তিন্হ কহি দীন্হা৷৷

2.1.118

चौपाई
এহি বিধি জগ হরি আশ্রিত রহঈ৷ জদপি অসত্য দেত দুখ অহঈ৷৷
জৌং সপনেং সির কাটৈ কোঈ৷ বিনু জাগেং ন দূরি দুখ হোঈ৷৷
জাসু কৃপাঅস ভ্রম মিটি জাঈ৷ গিরিজা সোই কৃপাল রঘুরাঈ৷৷
আদি অংত কোউ জাসু ন পাবা৷ মতি অনুমানি নিগম অস গাবা৷৷
বিনু পদ চলই সুনই বিনু কানা৷ কর বিনু করম করই বিধি নানা৷৷
আনন রহিত সকল রস ভোগী৷ বিনু বানী বকতা বড় জোগী৷৷
তনু বিনু পরস নযন বিনু দেখা৷ গ্রহই ঘ্রান বিনু বাস অসেষা৷৷
অসি সব ভাি অলৌকিক করনী৷ মহিমা জাসু জাই নহিং বরনী৷৷

1.7.118

चौपाई
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा।।
आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा।।
प्रबल अबिद्या कर परिवारा। मोह आदि तम मिटइ अपारा।।
तब सोइ बुद्धि पाइ उँजिआरा। उर गृहँ बैठि ग्रंथि निरुआरा।।
छोरन ग्रंथि पाव जौं सोई। तब यह जीव कृतारथ होई।।
छोरत ग्रंथि जानि खगराया। बिघ्न अनेक करइ तब माया।।
रिद्धि सिद्धि प्रेरइ बहु भाई। बुद्धहि लोभ दिखावहिं आई।।
कल बल छल करि जाहिं समीपा। अंचल बात बुझावहिं दीपा।।
होइ बुद्धि जौं परम सयानी। तिन्ह तन चितव न अनहित जानी।।

1.6.118

चौपाई
भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए।।
नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा।।
चितइ सबन्हि पर कीन्हि दाया। बोले मृदुल बचन रघुराया।।
तुम्हरें बल मैं रावनु मार् यो। तिलक बिभीषन कहँ पुनि सार् यो।।
निज निज गृह अब तुम्ह सब जाहू। सुमिरेहु मोहि डरपहु जनि काहू।।
सुनत बचन प्रेमाकुल बानर। जोरि पानि बोले सब सादर।।
प्रभु जोइ कहहु तुम्हहि सब सोहा। हमरे होत बचन सुनि मोहा।।
दीन जानि कपि किए सनाथा। तुम्ह त्रेलोक ईस रघुनाथा।।
सुनि प्रभु बचन लाज हम मरहीं। मसक कहूँ खगपति हित करहीं।।

1.2.118

चौपाई
पारबती सम पतिप्रिय होहू। देबि न हम पर छाड़ब छोहू।।
पुनि पुनि बिनय करिअ कर जोरी। जौं एहि मारग फिरिअ बहोरी।।
दरसनु देब जानि निज दासी। लखीं सीयँ सब प्रेम पिआसी।।
मधुर बचन कहि कहि परितोषीं। जनु कुमुदिनीं कौमुदीं पोषीं।।
तबहिं लखन रघुबर रुख जानी। पूँछेउ मगु लोगन्हि मृदु बानी।।
सुनत नारि नर भए दुखारी। पुलकित गात बिलोचन बारी।।
मिटा मोदु मन भए मलीने। बिधि निधि दीन्ह लेत जनु छीने।।
समुझि करम गति धीरजु कीन्हा। सोधि सुगम मगु तिन्ह कहि दीन्हा।।

1.1.118

चौपाई
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दुख अहई।।
जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दुख होई।।
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई। गिरिजा सोइ कृपाल रघुराई।।
आदि अंत कोउ जासु न पावा। मति अनुमानि निगम अस गावा।।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा।।
असि सब भाँति अलौकिक करनी। महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।

दोहा/सोरठा

Pages

Subscribe to RSS - 118