119

3.2.119

चौपाई
ફિરત નારિ નર અતિ પછિતાહીં। દેઅહિ દોષુ દેહિં મન માહીં।।
સહિત બિષાદ પરસપર કહહીં। બિધિ કરતબ ઉલટે સબ અહહીં।।
નિપટ નિરંકુસ નિઠુર નિસંકૂ। જેહિં સસિ કીન્હ સરુજ સકલંકૂ।।
રૂખ કલપતરુ સાગરુ ખારા। તેહિં પઠએ બન રાજકુમારા।।
જૌં પે ઇન્હહિ દીન્હ બનબાસૂ। કીન્હ બાદિ બિધિ ભોગ બિલાસૂ।।
એ બિચરહિં મગ બિનુ પદત્રાના। રચે બાદિ બિધિ બાહન નાના।।
એ મહિ પરહિં ડાસિ કુસ પાતા। સુભગ સેજ કત સૃજત બિધાતા।।
તરુબર બાસ ઇન્હહિ બિધિ દીન્હા। ધવલ ધામ રચિ રચિ શ્રમુ કીન્હા।।

3.1.119

चौपाई
કાસીં મરત જંતુ અવલોકી। જાસુ નામ બલ કરઉબિસોકી।।
સોઇ પ્રભુ મોર ચરાચર સ્વામી। રઘુબર સબ ઉર અંતરજામી।।
બિબસહુજાસુ નામ નર કહહીં। જનમ અનેક રચિત અઘ દહહીં।।
સાદર સુમિરન જે નર કરહીં। ભવ બારિધિ ગોપદ ઇવ તરહીં।।
રામ સો પરમાતમા ભવાની। તહભ્રમ અતિ અબિહિત તવ બાની।।
અસ સંસય આનત ઉર માહીં। ગ્યાન બિરાગ સકલ ગુન જાહીં।।
સુનિ સિવ કે ભ્રમ ભંજન બચના। મિટિ ગૈ સબ કુતરક કૈ રચના।।
ભઇ રઘુપતિ પદ પ્રીતિ પ્રતીતી। દારુન અસંભાવના બીતી।।

2.7.119

चौपाई
গ্যান পংথ কৃপান কৈ ধারা৷ পরত খগেস হোই নহিং বারা৷৷
জো নির্বিঘ্ন পংথ নির্বহঈ৷ সো কৈবল্য পরম পদ লহঈ৷৷
অতি দুর্লভ কৈবল্য পরম পদ৷ সংত পুরান নিগম আগম বদ৷৷
রাম ভজত সোই মুকুতি গোসাঈ৷ অনইচ্ছিত আবই বরিআঈ৷৷
জিমি থল বিনু জল রহি ন সকাঈ৷ কোটি ভাি কোউ করৈ উপাঈ৷৷
তথা মোচ্ছ সুখ সুনু খগরাঈ৷ রহি ন সকই হরি ভগতি বিহাঈ৷৷
অস বিচারি হরি ভগত সযানে৷ মুক্তি নিরাদর ভগতি লুভানে৷৷
ভগতি করত বিনু জতন প্রযাসা৷ সংসৃতি মূল অবিদ্যা নাসা৷৷
ভোজন করিঅ তৃপিতি হিত লাগী৷ জিমি সো অসন পচবৈ জঠরাগী৷৷

2.6.119

चौपाई
ফ়্
অতিসয প্রীতি দেখ রঘুরাঈ৷ লিন্হে সকল বিমান চঢ়াঈ৷৷
মন মহুবিপ্র চরন সিরু নাযো৷ উত্তর দিসিহি বিমান চলাযো৷৷
চলত বিমান কোলাহল হোঈ৷ জয রঘুবীর কহই সবু কোঈ৷৷
সিংহাসন অতি উচ্চ মনোহর৷ শ্রী সমেত প্রভু বৈঠৈ তা পর৷৷
রাজত রামু সহিত ভামিনী৷ মেরু সৃংগ জনু ঘন দামিনী৷৷
রুচির বিমানু চলেউ অতি আতুর৷ কীন্হী সুমন বৃষ্টি হরষে সুর৷৷
পরম সুখদ চলি ত্রিবিধ বযারী৷ সাগর সর সরি নির্মল বারী৷৷
সগুন হোহিং সুংদর চহুপাসা৷ মন প্রসন্ন নির্মল নভ আসা৷৷
কহ রঘুবীর দেখু রন সীতা৷ লছিমন ইহাহত্যো ই্রজীতা৷৷

2.2.119

चौपाई
ফিরত নারি নর অতি পছিতাহীং৷ দেঅহি দোষু দেহিং মন মাহীং৷৷
সহিত বিষাদ পরসপর কহহীং৷ বিধি করতব উলটে সব অহহীং৷৷
নিপট নিরংকুস নিঠুর নিসংকূ৷ জেহিং সসি কীন্হ সরুজ সকলংকূ৷৷
রূখ কলপতরু সাগরু খারা৷ তেহিং পঠএ বন রাজকুমারা৷৷
জৌং পে ইন্হহি দীন্হ বনবাসূ৷ কীন্হ বাদি বিধি ভোগ বিলাসূ৷৷
এ বিচরহিং মগ বিনু পদত্রানা৷ রচে বাদি বিধি বাহন নানা৷৷
এ মহি পরহিং ডাসি কুস পাতা৷ সুভগ সেজ কত সৃজত বিধাতা৷৷
তরুবর বাস ইন্হহি বিধি দীন্হা৷ ধবল ধাম রচি রচি শ্রমু কীন্হা৷৷

2.1.119

चौपाई
কাসীং মরত জংতু অবলোকী৷ জাসু নাম বল করউবিসোকী৷৷
সোই প্রভু মোর চরাচর স্বামী৷ রঘুবর সব উর অংতরজামী৷৷
বিবসহুজাসু নাম নর কহহীং৷ জনম অনেক রচিত অঘ দহহীং৷৷
সাদর সুমিরন জে নর করহীং৷ ভব বারিধি গোপদ ইব তরহীং৷৷
রাম সো পরমাতমা ভবানী৷ তহভ্রম অতি অবিহিত তব বানী৷৷
অস সংসয আনত উর মাহীং৷ গ্যান বিরাগ সকল গুন জাহীং৷৷
সুনি সিব কে ভ্রম ভংজন বচনা৷ মিটি গৈ সব কুতরক কৈ রচনা৷৷
ভই রঘুপতি পদ প্রীতি প্রতীতী৷ দারুন অসংভাবনা বীতী৷৷

1.7.119

चौपाई
ग्यान पंथ कृपान कै धारा। परत खगेस होइ नहिं बारा।।
जो निर्बिघ्न पंथ निर्बहई। सो कैवल्य परम पद लहई।।
अति दुर्लभ कैवल्य परम पद। संत पुरान निगम आगम बद।।
राम भजत सोइ मुकुति गोसाई। अनइच्छित आवइ बरिआई।।
जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाँति कोउ करै उपाई।।
तथा मोच्छ सुख सुनु खगराई। रहि न सकइ हरि भगति बिहाई।।
अस बिचारि हरि भगत सयाने। मुक्ति निरादर भगति लुभाने।।
भगति करत बिनु जतन प्रयासा। संसृति मूल अबिद्या नासा।।
भोजन करिअ तृपिति हित लागी। जिमि सो असन पचवै जठरागी।।

1.6.119

चौपाई 
अतिसय प्रीति देख रघुराई। लिन्हे सकल बिमान चढ़ाई।।
मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो।।
चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहइ सबु कोई।।
सिंहासन अति उच्च मनोहर। श्री समेत प्रभु बैठै ता पर।।
राजत रामु सहित भामिनी। मेरु सृंग जनु घन दामिनी।।
रुचिर बिमानु चलेउ अति आतुर। कीन्ही सुमन बृष्टि हरषे सुर।।
परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी। सागर सर सरि निर्मल बारी।।
सगुन होहिं सुंदर चहुँ पासा। मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा।।
कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता।।

1.2.119

चौपाई
फिरत नारि नर अति पछिताहीं। देअहि दोषु देहिं मन माहीं।।
सहित बिषाद परसपर कहहीं। बिधि करतब उलटे सब अहहीं।।
निपट निरंकुस निठुर निसंकू। जेहिं ससि कीन्ह सरुज सकलंकू।।
रूख कलपतरु सागरु खारा। तेहिं पठए बन राजकुमारा।।
जौं पे इन्हहि दीन्ह बनबासू। कीन्ह बादि बिधि भोग बिलासू।।
ए बिचरहिं मग बिनु पदत्राना। रचे बादि बिधि बाहन नाना।।
ए महि परहिं डासि कुस पाता। सुभग सेज कत सृजत बिधाता।।
तरुबर बास इन्हहि बिधि दीन्हा। धवल धाम रचि रचि श्रमु कीन्हा।।

1.1.119

चौपाई
कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी।।
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी।।
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं। जनम अनेक रचित अघ दहहीं।।
सादर सुमिरन जे नर करहीं। भव बारिधि गोपद इव तरहीं।।
राम सो परमातमा भवानी। तहँ भ्रम अति अबिहित तव बानी।।
अस संसय आनत उर माहीं। ग्यान बिराग सकल गुन जाहीं।।
सुनि सिव के भ्रम भंजन बचना। मिटि गै सब कुतरक कै रचना।।
भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती। दारुन असंभावना बीती।।

दोहा/सोरठा

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