11

2.3.11

चौपाई
কহ মুনি প্রভু সুনু বিনতী মোরী৷ অস্তুতি করৌং কবন বিধি তোরী৷৷
মহিমা অমিত মোরি মতি থোরী৷ রবি সন্মুখ খদ্যোত অোরী৷৷
শ্যাম তামরস দাম শরীরং৷ জটা মুকুট পরিধন মুনিচীরং৷৷
পাণি চাপ শর কটি তূণীরং৷ নৌমি নিরংতর শ্রীরঘুবীরং৷৷
মোহ বিপিন ঘন দহন কৃশানুঃ৷ সংত সরোরুহ কানন ভানুঃ৷৷
নিশিচর করি বরূথ মৃগরাজঃ৷ ত্রাতু সদা নো ভব খগ বাজঃ৷৷
অরুণ নযন রাজীব সুবেশং৷ সীতা নযন চকোর নিশেশং৷৷
হর হ্রদি মানস বাল মরালং৷ নৌমি রাম উর বাহু বিশালং৷৷
সংশয সর্প গ্রসন উরগাদঃ৷ শমন সুকর্কশ তর্ক বিষাদঃ৷৷

2.2.11

चौपाई
বাজহিং বাজনে বিবিধ বিধানা৷ পুর প্রমোদু নহিং জাই বখানা৷৷
ভরত আগমনু সকল মনাবহিং৷ আবহুবেগি নযন ফলু পাবহিং৷৷
হাট বাট ঘর গলীং অথাঈ৷ কহহিং পরসপর লোগ লোগাঈ৷৷
কালি লগন ভলি কেতিক বারা৷ পূজিহি বিধি অভিলাষু হমারা৷৷
কনক সিংঘাসন সীয সমেতা৷ বৈঠহিং রামু হোই চিত চেতা৷৷
সকল কহহিং কব হোইহি কালী৷ বিঘন মনাবহিং দেব কুচালী৷৷
তিন্হহি সোহাই ন অবধ বধাবা৷ চোরহি চংদিনি রাতি ন ভাবা৷৷
সারদ বোলি বিনয সুর করহীং৷ বারহিং বার পায লৈ পরহীং৷৷

2.1.11

चौपाई
মনি মানিক মুকুতা ছবি জৈসী৷ অহি গিরি গজ সির সোহ ন তৈসী৷৷
নৃপ কিরীট তরুনী তনু পাঈ৷ লহহিং সকল সোভা অধিকাঈ৷৷
তৈসেহিং সুকবি কবিত বুধ কহহীং৷ উপজহিং অনত অনত ছবি লহহীং৷৷
ভগতি হেতু বিধি ভবন বিহাঈ৷ সুমিরত সারদ আবতি ধাঈ৷৷
রাম চরিত সর বিনু অন্হবাএ সো শ্রম জাই ন কোটি উপাএ৷
কবি কোবিদ অস হৃদযবিচারী৷ গাবহিং হরি জস কলি মল হারী৷৷
কীন্হেং প্রাকৃত জন গুন গানা৷ সির ধুনি গিরা লগত পছিতানা৷৷
হৃদয সিংধু মতি সীপ সমানা৷ স্বাতি সারদা কহহিং সুজানা৷৷
জৌং বরষই বর বারি বিচারূ৷ হোহিং কবিত মুকুতামনি চারূ৷৷

1.7.11

चौपाई
अवधपुरी अति रुचिर बनाई। देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई।।
राम कहा सेवकन्ह बुलाई। प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई।।
सुनत बचन जहँ तहँ जन धाए। सुग्रीवादि तुरत अन्हवाए।।
पुनि करुनानिधि भरतु हँकारे। निज कर राम जटा निरुआरे।।
अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई। भगत बछल कृपाल रघुराई।।
भरत भाग्य प्रभु कोमलताई। सेष कोटि सत सकहिं न गाई।।
पुनि निज जटा राम बिबराए। गुर अनुसासन मागि नहाए।।
करि मज्जन प्रभु भूषन साजे। अंग अनंग देखि सत लाजे।।

1.6.11

चौपाई
इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा।।
सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी।।
तहँ तरु किसलय सुमन सुहाए। लछिमन रचि निज हाथ डसाए।।
ता पर रूचिर मृदुल मृगछाला। तेहीं आसान आसीन कृपाला।।
प्रभु कृत सीस कपीस उछंगा। बाम दहिन दिसि चाप निषंगा।।
दुहुँ कर कमल सुधारत बाना। कह लंकेस मंत्र लगि काना।।
बड़भागी अंगद हनुमाना। चरन कमल चापत बिधि नाना।।
प्रभु पाछें लछिमन बीरासन। कटि निषंग कर बान सरासन।।

दोहा/सोरठा

1.5.11

चौपाई
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।।
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।।
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।।
नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।।
यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।।
तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।।

दोहा/सोरठा

1.4.11

चौपाई
राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब ब्याकुल धावा।।
नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा।।
तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया।।
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।
प्रगट सो तनु तव आगें सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा।।
उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी।।
उमा दारु जोषित की नाई। सबहि नचावत रामु गोसाई।।
तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिबत सब कीन्हा।।
राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई।।

1.3.11

चौपाई
कह मुनि प्रभु सुनु बिनती मोरी। अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी।।
महिमा अमित मोरि मति थोरी। रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी।।
श्याम तामरस दाम शरीरं। जटा मुकुट परिधन मुनिचीरं।।
पाणि चाप शर कटि तूणीरं। नौमि निरंतर श्रीरघुवीरं।।
मोह विपिन घन दहन कृशानुः। संत सरोरुह कानन भानुः।।
निशिचर करि वरूथ मृगराजः। त्रातु सदा नो भव खग बाजः।।
अरुण नयन राजीव सुवेशं। सीता नयन चकोर निशेशं।।
हर ह्रदि मानस बाल मरालं। नौमि राम उर बाहु विशालं।।
संशय सर्प ग्रसन उरगादः। शमन सुकर्कश तर्क विषादः।।

1.2.11

चौपाई
बाजहिं बाजने बिबिध बिधाना। पुर प्रमोदु नहिं जाइ बखाना।।
भरत आगमनु सकल मनावहिं। आवहुँ बेगि नयन फलु पावहिं।।
हाट बाट घर गलीं अथाई। कहहिं परसपर लोग लोगाई।।
कालि लगन भलि केतिक बारा। पूजिहि बिधि अभिलाषु हमारा।।
कनक सिंघासन सीय समेता। बैठहिं रामु होइ चित चेता।।
सकल कहहिं कब होइहि काली। बिघन मनावहिं देव कुचाली।।
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा।।
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं बार पाय लै परहीं।।

दोहा/सोरठा

1.1.11

चौपाई
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी।।
नृप किरीट तरुनी तनु पाई। लहहिं सकल सोभा अधिकाई।।
तैसेहिं सुकबि कबित बुध कहहीं। उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं।।
भगति हेतु बिधि भवन बिहाई। सुमिरत सारद आवति धाई।।
राम चरित सर बिनु अन्हवाएँ। सो श्रम जाइ न कोटि उपाएँ।।
कबि कोबिद अस हृदयँ बिचारी। गावहिं हरि जस कलि मल हारी।।
कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लगत पछिताना।।
हृदय सिंधु मति सीप समाना। स्वाति सारदा कहहिं सुजाना।।
जौं बरषइ बर बारि बिचारू। होहिं कबित मुकुतामनि चारू।।

Pages

Subscribe to RSS - 11