121

3.2.121

चौपाई
નારિ સનેહ બિકલ બસ હોહીં। ચકઈ સા સમય જનુ સોહીં।।
મૃદુ પદ કમલ કઠિન મગુ જાની। ગહબરિ હૃદયકહહિં બર બાની।।
પરસત મૃદુલ ચરન અરુનારે। સકુચતિ મહિ જિમિ હૃદય હમારે।।
જૌં જગદીસ ઇન્હહિ બનુ દીન્હા। કસ ન સુમનમય મારગુ કીન્હા।।
જૌં માગા પાઇઅ બિધિ પાહીં। એ રખિઅહિં સખિ આિન્હ માહીં।।
જે નર નારિ ન અવસર આએ। તિન્હ સિય રામુ ન દેખન પાએ।।
સુનિ સુરુપ બૂઝહિં અકુલાઈ। અબ લગિ ગએ કહાલગિ ભાઈ।।
સમરથ ધાઇ બિલોકહિં જાઈ। પ્રમુદિત ફિરહિં જનમફલુ પાઈ।।

3.1.121

चौपाई
સુનુ ગિરિજા હરિચરિત સુહાએ। બિપુલ બિસદ નિગમાગમ ગાએ।।
હરિ અવતાર હેતુ જેહિ હોઈ। ઇદમિત્થં કહિ જાઇ ન સોઈ।।
રામ અર્તક્ય બુદ્ધિ મન બાની। મત હમાર અસ સુનહિ સયાની।।
તદપિ સંત મુનિ બેદ પુરાના। જસ કછુ કહહિં સ્વમતિ અનુમાના।।
તસ મૈં સુમુખિ સુનાવઉતોહી। સમુઝિ પરઇ જસ કારન મોહી।।
જબ જબ હોઇ ધરમ કૈ હાની। બાઢહિં અસુર અધમ અભિમાની।।
કરહિં અનીતિ જાઇ નહિં બરની। સીદહિં બિપ્ર ધેનુ સુર ધરની।।
તબ તબ પ્રભુ ધરિ બિબિધ સરીરા। હરહિ કૃપાનિધિ સજ્જન પીરા।।

2.7.121

चौपाई
পুনি সপ্রেম বোলেউ খগরাঊ৷ জৌং কৃপাল মোহি ঊপর ভাঊ৷৷
নাথ মোহি নিজ সেবক জানী৷ সপ্ত প্রস্ন কহহু বখানী৷৷
প্রথমহিং কহহু নাথ মতিধীরা৷ সব তে দুর্লভ কবন সরীরা৷৷
বড় দুখ কবন কবন সুখ ভারী৷ সোউ সংছেপহিং কহহু বিচারী৷৷
সংত অসংত মরম তুম্হ জানহু৷ তিন্হ কর সহজ সুভাব বখানহু৷৷
কবন পুন্য শ্রুতি বিদিত বিসালা৷ কহহু কবন অঘ পরম করালা৷৷
মানস রোগ কহহু সমুঝাঈ৷ তুম্হ সর্বগ্য কৃপা অধিকাঈ৷৷
তাত সুনহু সাদর অতি প্রীতী৷ মৈং সংছেপ কহউযহ নীতী৷৷
নর তন সম নহিং কবনিউ দেহী৷ জীব চরাচর জাচত তেহী৷৷

2.6.121

चौपाई
প্রভু হনুমংতহি কহা বুঝাঈ৷ ধরি বটু রূপ অবধপুর জাঈ৷৷
ভরতহি কুসল হমারি সুনাএহু৷ সমাচার লৈ তুম্হ চলি আএহু৷৷
তুরত পবনসুত গবনত ভযউ৷ তব প্রভু ভরদ্বাজ পহিং গযঊ৷৷
নানা বিধি মুনি পূজা কীন্হী৷ অস্তুতী করি পুনি আসিষ দীন্হী৷৷
মুনি পদ বংদি জুগল কর জোরী৷ চঢ়ি বিমান প্রভু চলে বহোরী৷৷
ইহানিষাদ সুনা প্রভু আএ৷ নাব নাব কহলোগ বোলাএ৷৷
সুরসরি নাঘি জান তব আযো৷ উতরেউ তট প্রভু আযসু পাযো৷৷
তব সীতাপূজী সুরসরী৷ বহু প্রকার পুনি চরনন্হি পরী৷৷
দীন্হি অসীস হরষি মন গংগা৷ সুংদরি তব অহিবাত অভংগা৷৷

2.2.121

चौपाई
নারি সনেহ বিকল বস হোহীং৷ চকঈ সা সময জনু সোহীং৷৷
মৃদু পদ কমল কঠিন মগু জানী৷ গহবরি হৃদযকহহিং বর বানী৷৷
পরসত মৃদুল চরন অরুনারে৷ সকুচতি মহি জিমি হৃদয হমারে৷৷
জৌং জগদীস ইন্হহি বনু দীন্হা৷ কস ন সুমনময মারগু কীন্হা৷৷
জৌং মাগা পাইঅ বিধি পাহীং৷ এ রখিঅহিং সখি আিন্হ মাহীং৷৷
জে নর নারি ন অবসর আএ৷ তিন্হ সিয রামু ন দেখন পাএ৷৷
সুনি সুরুপ বূঝহিং অকুলাঈ৷ অব লগি গএ কহালগি ভাঈ৷৷
সমরথ ধাই বিলোকহিং জাঈ৷ প্রমুদিত ফিরহিং জনমফলু পাঈ৷৷

2.1.121

चौपाई
সুনু গিরিজা হরিচরিত সুহাএ৷ বিপুল বিসদ নিগমাগম গাএ৷৷
হরি অবতার হেতু জেহি হোঈ৷ ইদমিত্থং কহি জাই ন সোঈ৷৷
রাম অর্তক্য বুদ্ধি মন বানী৷ মত হমার অস সুনহি সযানী৷৷
তদপি সংত মুনি বেদ পুরানা৷ জস কছু কহহিং স্বমতি অনুমানা৷৷
তস মৈং সুমুখি সুনাবউতোহী৷ সমুঝি পরই জস কারন মোহী৷৷
জব জব হোই ধরম কৈ হানী৷ বাঢহিং অসুর অধম অভিমানী৷৷
করহিং অনীতি জাই নহিং বরনী৷ সীদহিং বিপ্র ধেনু সুর ধরনী৷৷
তব তব প্রভু ধরি বিবিধ সরীরা৷ হরহি কৃপানিধি সজ্জন পীরা৷৷

1.7.121

चौपाई
पुनि सप्रेम बोलेउ खगराऊ। जौं कृपाल मोहि ऊपर भाऊ।।
नाथ मोहि निज सेवक जानी। सप्त प्रस्न कहहु बखानी।।
प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब ते दुर्लभ कवन सरीरा।।
बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोउ संछेपहिं कहहु बिचारी।।
संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु।।
कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला।।
मानस रोग कहहु समुझाई। तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई।।
तात सुनहु सादर अति प्रीती। मैं संछेप कहउँ यह नीती।।
नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही।।

1.6.121

चौपाई
प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई।।
भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु।।
तुरत पवनसुत गवनत भयउ। तब प्रभु भरद्वाज पहिं गयऊ।।
नाना बिधि मुनि पूजा कीन्ही। अस्तुती करि पुनि आसिष दीन्ही।।
मुनि पद बंदि जुगल कर जोरी। चढ़ि बिमान प्रभु चले बहोरी।।
इहाँ निषाद सुना प्रभु आए। नाव नाव कहँ लोग बोलाए।।
सुरसरि नाघि जान तब आयो। उतरेउ तट प्रभु आयसु पायो।।
तब सीताँ पूजी सुरसरी। बहु प्रकार पुनि चरनन्हि परी।।
दीन्हि असीस हरषि मन गंगा। सुंदरि तव अहिवात अभंगा।।

1.2.121

चौपाई
नारि सनेह बिकल बस होहीं। चकई साँझ समय जनु सोहीं।।
मृदु पद कमल कठिन मगु जानी। गहबरि हृदयँ कहहिं बर बानी।।
परसत मृदुल चरन अरुनारे। सकुचति महि जिमि हृदय हमारे।।
जौं जगदीस इन्हहि बनु दीन्हा। कस न सुमनमय मारगु कीन्हा।।
जौं मागा पाइअ बिधि पाहीं। ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माहीं।।
जे नर नारि न अवसर आए। तिन्ह सिय रामु न देखन पाए।।
सुनि सुरुप बूझहिं अकुलाई। अब लगि गए कहाँ लगि भाई।।
समरथ धाइ बिलोकहिं जाई। प्रमुदित फिरहिं जनमफलु पाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.121

चौपाई
सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए।।
हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई।।
राम अर्तक्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी।।
तदपि संत मुनि बेद पुराना। जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना।।
तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही। समुझि परइ जस कारन मोही।।
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा।।

दोहा/सोरठा

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