125

4.1.125

चौपाई
ಹಿಮಗಿರಿ ಗುಹಾ ಏಕ ಅತಿ ಪಾವನಿ. ಬಹ ಸಮೀಪ ಸುರಸರೀ ಸುಹಾವನಿ..
ಆಶ್ರಮ ಪರಮ ಪುನೀತ ಸುಹಾವಾ. ದೇಖಿ ದೇವರಿಷಿ ಮನ ಅತಿ ಭಾವಾ..
ನಿರಖಿ ಸೈಲ ಸರಿ ಬಿಪಿನ ಬಿಭಾಗಾ. ಭಯಉ ರಮಾಪತಿ ಪದ ಅನುರಾಗಾ..
ಸುಮಿರತ ಹರಿಹಿ ಶ್ರಾಪ ಗತಿ ಬಾಧೀ. ಸಹಜ ಬಿಮಲ ಮನ ಲಾಗಿ ಸಮಾಧೀ..
ಮುನಿ ಗತಿ ದೇಖಿ ಸುರೇಸ ಡೇರಾನಾ. ಕಾಮಹಿ ಬೋಲಿ ಕೀನ್ಹ ಸಮಾನಾ..
ಸಹಿತ ಸಹಾಯ ಜಾಹು ಮಮ ಹೇತೂ. ಚಕೇಉ ಹರಷಿ ಹಿಯಜಲಚರಕೇತೂ..
ಸುನಾಸೀರ ಮನ ಮಹುಅಸಿ ತ್ರಾಸಾ. ಚಹತ ದೇವರಿಷಿ ಮಮ ಪುರ ಬಾಸಾ..
ಜೇ ಕಾಮೀ ಲೋಲುಪ ಜಗ ಮಾಹೀಂ. ಕುಟಿಲ ಕಾಕ ಇವ ಸಬಹಿ ಡೇರಾಹೀಂ..

3.7.125

चौपाई
મૈ કૃત્કૃત્ય ભયઉતવ બાની। સુનિ રઘુબીર ભગતિ રસ સાની।।
રામ ચરન નૂતન રતિ ભઈ। માયા જનિત બિપતિ સબ ગઈ।।
મોહ જલધિ બોહિત તુમ્હ ભએ। મો કહનાથ બિબિધ સુખ દએ।।
મો પહિં હોઇ ન પ્રતિ ઉપકારા। બંદઉતવ પદ બારહિં બારા।।
પૂરન કામ રામ અનુરાગી। તુમ્હ સમ તાત ન કોઉ બડ઼ભાગી।।
સંત બિટપ સરિતા ગિરિ ધરની। પર હિત હેતુ સબન્હ કૈ કરની।।
સંત હૃદય નવનીત સમાના। કહા કબિન્હ પરિ કહૈ ન જાના।।
નિજ પરિતાપ દ્રવઇ નવનીતા। પર દુખ દ્રવહિં સંત સુપુનીતા।।
જીવન જન્મ સુફલ મમ ભયઊ। તવ પ્રસાદ સંસય સબ ગયઊ।।

3.2.125

चौपाई
મુનિ કહુરામ દંડવત કીન્હા। આસિરબાદુ બિપ્રબર દીન્હા।।
દેખિ રામ છબિ નયન જુડ઼ાને। કરિ સનમાનુ આશ્રમહિં આને।।
મુનિબર અતિથિ પ્રાનપ્રિય પાએ। કંદ મૂલ ફલ મધુર મગાએ।।
સિય સૌમિત્રિ રામ ફલ ખાએ। તબ મુનિ આશ્રમ દિએ સુહાએ।।
બાલમીકિ મન આનુ ભારી। મંગલ મૂરતિ નયન નિહારી।।
તબ કર કમલ જોરિ રઘુરાઈ। બોલે બચન શ્રવન સુખદાઈ।।
તુમ્હ ત્રિકાલ દરસી મુનિનાથા। બિસ્વ બદર જિમિ તુમ્હરેં હાથા।।
અસ કહિ પ્રભુ સબ કથા બખાની। જેહિ જેહિ ભાિ દીન્હ બનુ રાની।।

3.1.125

चौपाई
હિમગિરિ ગુહા એક અતિ પાવનિ। બહ સમીપ સુરસરી સુહાવનિ।।
આશ્રમ પરમ પુનીત સુહાવા। દેખિ દેવરિષિ મન અતિ ભાવા।।
નિરખિ સૈલ સરિ બિપિન બિભાગા। ભયઉ રમાપતિ પદ અનુરાગા।।
સુમિરત હરિહિ શ્રાપ ગતિ બાધી। સહજ બિમલ મન લાગિ સમાધી।।
મુનિ ગતિ દેખિ સુરેસ ડેરાના। કામહિ બોલિ કીન્હ સમાના।।
સહિત સહાય જાહુ મમ હેતૂ। ચકેઉ હરષિ હિયજલચરકેતૂ।।
સુનાસીર મન મહુઅસિ ત્રાસા। ચહત દેવરિષિ મમ પુર બાસા।।
જે કામી લોલુપ જગ માહીં। કુટિલ કાક ઇવ સબહિ ડેરાહીં।।

2.7.125

चौपाई
মৈ কৃত্কৃত্য ভযউতব বানী৷ সুনি রঘুবীর ভগতি রস সানী৷৷
রাম চরন নূতন রতি ভঈ৷ মাযা জনিত বিপতি সব গঈ৷৷
মোহ জলধি বোহিত তুম্হ ভএ৷ মো কহনাথ বিবিধ সুখ দএ৷৷
মো পহিং হোই ন প্রতি উপকারা৷ বংদউতব পদ বারহিং বারা৷৷
পূরন কাম রাম অনুরাগী৷ তুম্হ সম তাত ন কোউ বড়ভাগী৷৷
সংত বিটপ সরিতা গিরি ধরনী৷ পর হিত হেতু সবন্হ কৈ করনী৷৷
সংত হৃদয নবনীত সমানা৷ কহা কবিন্হ পরি কহৈ ন জানা৷৷
নিজ পরিতাপ দ্রবই নবনীতা৷ পর দুখ দ্রবহিং সংত সুপুনীতা৷৷
জীবন জন্ম সুফল মম ভযঊ৷ তব প্রসাদ সংসয সব গযঊ৷৷

2.2.125

चौपाई
মুনি কহুরাম দংডবত কীন্হা৷ আসিরবাদু বিপ্রবর দীন্হা৷৷
দেখি রাম ছবি নযন জুড়ানে৷ করি সনমানু আশ্রমহিং আনে৷৷
মুনিবর অতিথি প্রানপ্রিয পাএ৷ কংদ মূল ফল মধুর মগাএ৷৷
সিয সৌমিত্রি রাম ফল খাএ৷ তব মুনি আশ্রম দিএ সুহাএ৷৷
বালমীকি মন আনু ভারী৷ মংগল মূরতি নযন নিহারী৷৷
তব কর কমল জোরি রঘুরাঈ৷ বোলে বচন শ্রবন সুখদাঈ৷৷
তুম্হ ত্রিকাল দরসী মুনিনাথা৷ বিস্ব বদর জিমি তুম্হরেং হাথা৷৷
অস কহি প্রভু সব কথা বখানী৷ জেহি জেহি ভাি দীন্হ বনু রানী৷৷

2.1.125

चौपाई
হিমগিরি গুহা এক অতি পাবনি৷ বহ সমীপ সুরসরী সুহাবনি৷৷
আশ্রম পরম পুনীত সুহাবা৷ দেখি দেবরিষি মন অতি ভাবা৷৷
নিরখি সৈল সরি বিপিন বিভাগা৷ ভযউ রমাপতি পদ অনুরাগা৷৷
সুমিরত হরিহি শ্রাপ গতি বাধী৷ সহজ বিমল মন লাগি সমাধী৷৷
মুনি গতি দেখি সুরেস ডেরানা৷ কামহি বোলি কীন্হ সমানা৷৷
সহিত সহায জাহু মম হেতূ৷ চকেউ হরষি হিযজলচরকেতূ৷৷
সুনাসীর মন মহুঅসি ত্রাসা৷ চহত দেবরিষি মম পুর বাসা৷৷
জে কামী লোলুপ জগ মাহীং৷ কুটিল কাক ইব সবহি ডেরাহীং৷৷

1.7.125

चौपाई
मै कृत्कृत्य भयउँ तव बानी। सुनि रघुबीर भगति रस सानी।।
राम चरन नूतन रति भई। माया जनित बिपति सब गई।।
मोह जलधि बोहित तुम्ह भए। मो कहँ नाथ बिबिध सुख दए।।
मो पहिं होइ न प्रति उपकारा। बंदउँ तव पद बारहिं बारा।।
पूरन काम राम अनुरागी। तुम्ह सम तात न कोउ बड़भागी।।
संत बिटप सरिता गिरि धरनी। पर हित हेतु सबन्ह कै करनी।।
संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना।।
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता।।
जीवन जन्म सुफल मम भयऊ। तव प्रसाद संसय सब गयऊ।।

1.2.125

चौपाई
मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा। आसिरबादु बिप्रबर दीन्हा।।
देखि राम छबि नयन जुड़ाने। करि सनमानु आश्रमहिं आने।।
मुनिबर अतिथि प्रानप्रिय पाए। कंद मूल फल मधुर मगाए।।
सिय सौमित्रि राम फल खाए। तब मुनि आश्रम दिए सुहाए।।
बालमीकि मन आनँदु भारी। मंगल मूरति नयन निहारी।।
तब कर कमल जोरि रघुराई। बोले बचन श्रवन सुखदाई।।
तुम्ह त्रिकाल दरसी मुनिनाथा। बिस्व बदर जिमि तुम्हरें हाथा।।
अस कहि प्रभु सब कथा बखानी। जेहि जेहि भाँति दीन्ह बनु रानी।।

दोहा/सोरठा

1.1.125

चौपाई
हिमगिरि गुहा एक अति पावनि। बह समीप सुरसरी सुहावनि।।
आश्रम परम पुनीत सुहावा। देखि देवरिषि मन अति भावा।।
निरखि सैल सरि बिपिन बिभागा। भयउ रमापति पद अनुरागा।।
सुमिरत हरिहि श्राप गति बाधी। सहज बिमल मन लागि समाधी।।
मुनि गति देखि सुरेस डेराना। कामहि बोलि कीन्ह सनमाना।।
सहित सहाय जाहु मम हेतू। चकेउ हरषि हियँ जलचरकेतू।।
सुनासीर मन महुँ असि त्रासा। चहत देवरिषि मम पुर बासा।।
जे कामी लोलुप जग माहीं। कुटिल काक इव सबहि डेराहीं।।

दोहा/सोरठा

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