12

2.3.12

चौपाई
এবমস্তু করি রমানিবাসা৷ হরষি চলে কুভংজ রিষি পাসা৷৷
বহুত দিবস গুর দরসন পাএ ভএ মোহি এহিং আশ্রম আএ৷
অব প্রভু সংগ জাউগুর পাহীং৷ তুম্হ কহনাথ নিহোরা নাহীং৷৷
দেখি কৃপানিধি মুনি চতুরাঈ৷ লিএ সংগ বিহসৈ দ্বৌ ভাঈ৷৷
পংথ কহত নিজ ভগতি অনূপা৷ মুনি আশ্রম পহুে সুরভূপা৷৷
তুরত সুতীছন গুর পহিং গযঊ৷ করি দংডবত কহত অস ভযঊ৷৷
নাথ কৌসলাধীস কুমারা৷ আএ মিলন জগত আধারা৷৷
রাম অনুজ সমেত বৈদেহী৷ নিসি দিনু দেব জপত হহু জেহী৷৷
সুনত অগস্তি তুরত উঠি ধাএ৷ হরি বিলোকি লোচন জল ছাএ৷৷
মুনি পদ কমল পরে দ্বৌ ভাঈ৷ রিষি অতি প্রীতি লিএ উর লাঈ৷৷

2.2.12

चौपाई
সুনি সুর বিনয ঠাঢ়ি পছিতাতী৷ ভইউসরোজ বিপিন হিমরাতী৷৷
দেখি দেব পুনি কহহিং নিহোরী৷ মাতু তোহি নহিং থোরিউ খোরী৷৷
বিসময হরষ রহিত রঘুরাঊ৷ তুম্হ জানহু সব রাম প্রভাঊ৷৷
জীব করম বস সুখ দুখ ভাগী৷ জাইঅ অবধ দেব হিত লাগী৷৷
বার বার গহি চরন সোচৌ৷ চলী বিচারি বিবুধ মতি পোচী৷৷
ঊ নিবাসু নীচি করতূতী৷ দেখি ন সকহিং পরাই বিভূতী৷৷
আগিল কাজু বিচারি বহোরী৷ করহহিং চাহ কুসল কবি মোরী৷৷
হরষি হৃদযদসরথ পুর আঈ৷ জনু গ্রহ দসা দুসহ দুখদাঈ৷৷

2.1.12

चौपाई
জে জনমে কলিকাল করালা৷ করতব বাযস বেষ মরালা৷৷
চলত কুপংথ বেদ মগ ছা়ে৷ কপট কলেবর কলি মল ভা়েং৷৷
বংচক ভগত কহাই রাম কে৷ কিংকর কংচন কোহ কাম কে৷৷
তিন্হ মহপ্রথম রেখ জগ মোরী৷ ধীংগ ধরমধ্বজ ধংধক ধোরী৷৷
জৌং অপনে অবগুন সব কহঊ বাঢ়ই কথা পার নহিং লহঊ৷
তাতে মৈং অতি অলপ বখানে৷ থোরে মহুজানিহহিং সযানে৷৷
সমুঝি বিবিধি বিধি বিনতী মোরী৷ কোউ ন কথা সুনি দেইহি খোরী৷৷
এতেহু পর করিহহিং জে অসংকা৷ মোহি তে অধিক তে জড় মতি রংকা৷৷
কবি ন হোউনহিং চতুর কহাবউ মতি অনুরূপ রাম গুন গাবউ৷

1.7.12

चौपाई
प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा। तुरत दिब्य सिंघासन मागा।।
रबि सम तेज सो बरनि न जाई। बैठे राम द्विजन्ह सिरु नाई।।
जनकसुता समेत रघुराई। पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई।।
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे। नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे।।
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा। पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा।।
सुत बिलोकि हरषीं महतारी। बार बार आरती उतारी।।
बिप्रन्ह दान बिबिध बिधि दीन्हे। जाचक सकल अजाचक कीन्हे।।
सिंघासन पर त्रिभुअन साई। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाईं।।

1.6.12

चौपाई
पूरब दिसि गिरिगुहा निवासी। परम प्रताप तेज बल रासी।।
मत्त नाग तम कुंभ बिदारी। ससि केसरी गगन बन चारी।।
बिथुरे नभ मुकुताहल तारा। निसि सुंदरी केर सिंगारा।।
कह प्रभु ससि महुँ मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई।।
कह सुग़ीव सुनहु रघुराई। ससि महुँ प्रगट भूमि कै झाँई।।
मारेउ राहु ससिहि कह कोई। उर महँ परी स्यामता सोई।।
कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा। सार भाग ससि कर हरि लीन्हा।।
छिद्र सो प्रगट इंदु उर माहीं। तेहि मग देखिअ नभ परिछाहीं।।
प्रभु कह गरल बंधु ससि केरा। अति प्रिय निज उर दीन्ह बसेरा।।

1.5.12

चौपाई
त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।।
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।।
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।।
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।।
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।।
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।।
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।।
देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा।।
पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।।

1.4.12

चौपाई
उमा राम सम हित जग माहीं। गुरु पितु मातु बंधु प्रभु नाहीं।।
सुर नर मुनि सब कै यह रीती। स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।
बालि त्रास ब्याकुल दिन राती। तन बहु ब्रन चिंताँ जर छाती।।
सोइ सुग्रीव कीन्ह कपिराऊ। अति कृपाल रघुबीर सुभाऊ।।
जानतहुँ अस प्रभु परिहरहीं। काहे न बिपति जाल नर परहीं।।
पुनि सुग्रीवहि लीन्ह बोलाई। बहु प्रकार नृपनीति सिखाई।।
कह प्रभु सुनु सुग्रीव हरीसा। पुर न जाउँ दस चारि बरीसा।।
गत ग्रीषम बरषा रितु आई। रहिहउँ निकट सैल पर छाई।।

1.3.12

चौपाई
एवमस्तु करि रमानिवासा। हरषि चले कुभंज रिषि पासा।।
बहुत दिवस गुर दरसन पाएँ। भए मोहि एहिं आश्रम आएँ।।
अब प्रभु संग जाउँ गुर पाहीं। तुम्ह कहँ नाथ निहोरा नाहीं।।
देखि कृपानिधि मुनि चतुराई। लिए संग बिहसै द्वौ भाई।।
पंथ कहत निज भगति अनूपा। मुनि आश्रम पहुँचे सुरभूपा।।
तुरत सुतीछन गुर पहिं गयऊ। करि दंडवत कहत अस भयऊ।।
नाथ कौसलाधीस कुमारा। आए मिलन जगत आधारा।।
राम अनुज समेत बैदेही। निसि दिनु देव जपत हहु जेही।।
सुनत अगस्ति तुरत उठि धाए। हरि बिलोकि लोचन जल छाए।।

1.2.12

चौपाई
सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती। भइउँ सरोज बिपिन हिमराती।।
देखि देव पुनि कहहिं निहोरी। मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी।।
बिसमय हरष रहित रघुराऊ। तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ।।
जीव करम बस सुख दुख भागी। जाइअ अवध देव हित लागी।।
बार बार गहि चरन सँकोचौ। चली बिचारि बिबुध मति पोची।।
ऊँच निवासु नीचि करतूती। देखि न सकहिं पराइ बिभूती।।
आगिल काजु बिचारि बहोरी। करहहिं चाह कुसल कबि मोरी।।
हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई। जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.12

चौपाई
जे जनमे कलिकाल कराला। करतब बायस बेष मराला।।
चलत कुपंथ बेद मग छाँड़े। कपट कलेवर कलि मल भाँड़ें।।
बंचक भगत कहाइ राम के। किंकर कंचन कोह काम के।।
तिन्ह महँ प्रथम रेख जग मोरी। धींग धरमध्वज धंधक धोरी।।
जौं अपने अवगुन सब कहऊँ। बाढ़इ कथा पार नहिं लहऊँ।।
ताते मैं अति अलप बखाने। थोरे महुँ जानिहहिं सयाने।।
समुझि बिबिधि बिधि बिनती मोरी। कोउ न कथा सुनि देइहि खोरी।।
एतेहु पर करिहहिं जे असंका। मोहि ते अधिक ते जड़ मति रंका।।
कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ।।

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